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शम ७, दर्शनमांहि जिम जैनदर्शन ८, क्षीरमांहि जिम गोक्षीर ९, जलमां जिम गंगानीर १०, पट्टसूत्रमाहि |जिम हीर ११, वस्नमांहि जिम चीर १२, अलंकारमांहि जिम चूडामणि १३, ज्योतिषिमांहि जिम निशामणि १४, तुरंगममाहि जिम पंचवल्लभकिसोर १५, नृत्यकलावंतमांहि जिम मोर १६, गजमांहि जिम ऐरावण १७, दैत्यमांहि जिम रावण १८, वनमांहि जिम नंदनवन १९, काष्ठमांहि जिम चंदन २०, तेजवंतमांहि जिम आदित्य २१, साहसीकमांहि जिम श्रीविक्रमादित्य २२, न्यायवंतमांहि जिम श्रीराम २३, रूपवंतमांहि जिम काम २४, सतीमांहि जिम सीता २५, शास्त्रमांहि जिम गीता (भगवति) २६, वाजिनमांहि जिम भंभा २७, स्त्रीमांहि जिम रंभा २८, सुगंधमांहि जिम कस्तूरी २९, वस्तुमांहि जिम तेजनतूरी ३०, पुन्यश्लोकमांहि जिम नल ३१, पुष्पमाहि जिम सहस्रदलकमल ३२, धनुर्द्धरमांहि जिम अर्जुन ३३, इंद्रियामांहि जिम नयन ३४, धातुमांहि जिम स्वर्ण ३५, दातारमांहि जिम कर्ण ३६, गौमांहि जिम कामधेनु ३७, लेहमांहि जिम घृत ३८, जलमाहि जिम अमृत ३९, तिम लौकिकलोकोत्तरसकलपर्वमांहि श्रीपर्युषणापर्व मोटो जाणवो॥ | पुनर्यथा-भाद्रवासुदिपंचमीपर्व श्रीजिनशासने मान्यं वर्तते । तथा परशासनेऽपि ऋषिपंचमीपर्वेति मान्यम् । तत्सम्बन्धो यथा-पुष्पवत्यां नगर्या गंगाधरनामा एको विप्रोऽभूत्, तस्य पितरौ मृतौ, क्रमेण पुत्रगृहे पिता बलीव? जातः, माता तु शुनी बभूव । अथ च तस्यैव पितुः श्राद्धदिनं समागतम् , तस्मिन् दिने * पुत्रेन बलीवक्षोटयितुं तैलकस्य दत्तः, पुत्रेण दुग्धमानाय्य क्षैरेयी राधिता, पितृश्राद्धकरणाय ब्राह्मण-1
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