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________________ अँधा बढई किसी गाँव में एक आदमी बढ़ई का काम करता था। ईमानदारी से काम करके वह जितनी भी कमाता था उसमें वह और उसका परिवार गुज़ारा कर लेते थे। उसकी पत्नी और बच्चे संतुष्ट रहते थे पर स्वयं बढ़ई के मन में असंतोष व्याप्त रहता था। वह स्वयं से कहता - "मैं बहुत गरीब हूँ और अपने परिवार को खुश नहीं रख पाता। अगर मेरे पास कुछ सोना आ जाए तो मैं और मेरा परिवार बहुत सुख से रहेंगे।" एक दिन वह बाज़ार से गुज़र रहा था। एक सुनार की दुकान पर उसने बिक्री के लिए रखे गए सोने के जेवर देखे। वह उन्हें बड़ी लालसा से देखता रहा और अचानक ही उसने एक जेवर उठा लिया और उसे ले भागा। दुकानदार यह देखकर चिल्लाया और आसपास खड़े लोग बढ़ई के पीछे भागने लगे। शोर सुनकर कुछ सिपाही भी वहां आ पहुंचे और सभी ने बढ़ई को घेरकर पकड़ लिया। उसे पकड़कर थाने ले गए और जेल में बंद कर दिया। च्वांग-त्जु उसे देखने के लिए गया और उसने उससे पूछा - "इतने सारे लोगों के आसपास होते हुए भी तुमने जेवर चुराने का प्रयास क्यों किया?" बढ़ई बोला - "उस समय मुझे सोने के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।" च्वांग-त्जु सुनार के पास गया और उससे बोला - "जिस व्यक्ति ने तुम्हारा जेवर चुराया वह स्वभाव से बुरा आदमी नहीं है। उसके लोभ ने उसे अँधा बना दियाऔर सभी अंधे व्यक्तियों की तरह हमें उसकी भी सहायता करनी चाहिए। मैं चाहता हूँ की तुम उसे जेल से मुक्त करवा दो।" सुनार इसके लिए सहमत हो गया। बढ़ई को रिहा कर दिया गया। च्वांग-त्जु एक महीने तक हर दिन उसके पास जाकर उसे 'जो मिले उसी में संतुष्ट रहने' का ज्ञान देता था। अब बढ़ई को सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगा। 130
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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