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________________ ६२ . वचन-साहित्य-परिचय चंद्रज्ञान, (१६) विव, (२०) ललित, (२१) प्रोद्गीत, (२२) सिद्ध, (२३) संतान, (२४) सर्वोक्ति, (२५) पारमेश्वर, (२६) सुप्रभदे, (२७) किरण, (२८) वातुला । इसके अलावा भी तारक तंत्र, वाम तंत्र आदि १२५ अथवा २०७ उपागम हैं, ऐसा उल्लेख अनेक जगह मिलता है। प्रो० राधाकृष्णन्की किताब 'इंडियन फिलॉसफी' में लिखा है, "कांचीके कैलास नाथके मंदिर में एक शिलालेख है । उस शिलालेखमें इन २८ शिवागमोंका उल्लेख है ।" वह मंदिर पांचवी सदी का है । यदि पांचवीं सदीमें इन २८ शिवागमोंका नाम मिलता है तो उसके कई सौ साल पहलेसे शैवागमोंका प्रचलन होगा। तथा शैवानुगम अथवा शैव संप्रदाय भी उससे कई सौ वर्ष पहले प्रचलित होगा। इसके अलावा ईस्वी सन् के पहले ही तमिलनाड में 'अरिवर' नामसे शैव संतोकी परंपरा प्रसिद्ध है । सेक्कियर नामके तमिल कवि ने 'पे पुराणम्' नामका ग्रंथ लिखा है। इस ग्रंथका विषय है ६३ शैव संतोका जीवन वृत्त । इन सब आधारोंको देखा जाय तो निश्चित रूपसे इस तर्क पर पहुंच जाते हैं कि शिवागमोंका काल आज से २००० वर्ष पहले का है। अन्य आगमों में जो बातें हैं वह सब शिवागममें आती हैं। उपरोक्त २८ शिवागमोंके सब प्रकाशित ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं हैं । हो सकता है कहीं उनकी हस्त-लिखित प्रतियां उपलब्ध हों। १९०५ में कुछ शिवागम नागरी लिपिमें प्रकाशित हुए थे। बाद में १६१४ में कन्नड़ लिपिमें वातुल, सूक्ष्म, देवीकालोत्तरके कुछ भाग तथा पारमेश्वर, ये चार पागम प्रकाशित हुए हैं । उसका नाम 'तंत्र संग्रह' रखा गया था। अर्थात् सब शिवागम सबके लिए सुलभ नहीं हैं। इस अध्यायमें जो कुछ लिखा गया है । वह प्राप्त पुस्तकोंके आधार पर । लिखा गया है । इसलिए जो कुछ लिखा गया है वह सब पूर्ण है, यथार्थ है, ऐसा दावा नहीं किया जा सकता। (१) यह आगम अपने बारेमें कुछ कहते समय बार-बार 'तंत्र' शब्दका उपयोग करते हैं। जैसे, 'महातंत्र जगत्पतिः' (मु० प्र० २-२), 'वातुलाख्ये महातन्त्र' (क० ५० १ श्लो० ७), 'इति सर्वेषु तन्त्रेषु' (सू०प० १ श्लो० ३०), आदि ऐसे अनेक उदाहरणोंसे स्पष्ट होता है कि यह साधना-शास्त्र है। (२) शिवागमों में शिवही मुख्य प्राचार्य हैं। अथवा वही मुख्य उपदेशक हैं। उन्होंने वातुल में स्कंदको, सूक्ष्म, देविकालोत्तर और पारमेश्वरमें पार्वतीको, मुकुटमें इंद्रको उपदेश दिया है। (३) सव शिवागमोंमें उपदेशका उद्देश्य कहते समय सर्वलोकहितार्थ, योगियोंके रक्षणार्थ, साधकोंके हितार्थ, सर्व-लोकोपकारार्थ, शिवने यह उपदेश दिया ऐसा कहा गया है।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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