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________________ साम्प्रदायिक स्वरूप अथवा पट्स्थल-शास्त्र ... जो वेद अथवा उपनिपदों में न हो। किंतु ऐसा कह सकते हैं कि उन्हीं तत्वोंके प्रतिपादन के लिए अपनी कल्पनाका उपयोग आवश्यकतासे अधिक किया हैं। जैसे, उपनिपदोंमें सृष्टिके मूलका विवेचन करते समय कहा है, "जो एक था वही अनेक हुग्रा, अथवा उसने अनेक होना चाहा ।" किंतु आगमोंने कहा "योगियों के हितके लिए, अथवा लोक-कल्याण के लिए परमात्माने इस सृष्टिकी रचनाकी !" शुद्ध-सत्य तत्व अनेक प्रकारका रूपक बनकर सामने आया । और वही अनेक प्रकारके रूपक अनेक परिधान पहनने लगे। वही आवरण अनेक प्रकार के संप्रदाय अथवा अनुगम बनाने में अथवा अनेक प्रकारकी उलझनें पैदा करने में समर्थ हुया । यही बात प्राचार-धर्म के निरूपणके विषयमें कही जा सकती है। वेदोक्त और आगमोक्त पाचारमें अनेक प्रकारकी भिन्नता है। जैसे उपनयनका स्थान भिन्न प्रकारकी दीक्षाओंने ले लिया । गायत्री मंत्र के स्थान पर अन्य अनेक प्रकारके मंत्र या बैठे। यज्ञ, पान, हवन, होमके स्थान पर पोडशोपचार पूजा, अष्टविध अर्चन, नैवेद्य, भारती, प्रसाद ग्रहण आदिका प्रचलन हुआ। ब्रह्मोपासनाके स्थानपर सगुण नवविध भक्ति प्रागयी। यह सब अागमोक्त साधना-भिन्नताके नमूने हैं। आगमोंकी यह मान्यता है कि नागमोक्त साधना भुषित और मुक्ति देने वाली है। इसका अर्थ है इहमें (इस लोकमें) भुक्ति और 'परमे'(परलोकमें) मुक्ति। भुक्ति और मुक्ति में चारों पुरुषार्थोका समावेश होजाता है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि कन्नड़ वचनशास्त्रके प्रेरणा स्रोत शिवागम हैं । उन शिवागमोंकी विशेष जानकारीके लिए आगम ग्रंथोंका यह सामान्य ज्ञान पर्याप्त है । अब शिवगामोंका विचार करें। अन्य भागमोंकी तरह शिवागमोंने भी मुक्ति को ही अपना साव्य माना है। उस मुक्ति के साधनाके रूप में अपने इष्ट देवता शिवकी उपासना, तथाः उसके अनुरूप विविध आचार-धर्मका निरूपण किया है । शिवागमोंके अनुसार शिव ही सर्वोत्तम हैं । इन शिवागमों में भी वैदिक और अवैदिक, दो विभेद हैं। उनमें काल, भैरव, कापालिक, पाशुपत आदि अवैदिक शिवागमोंसे वचनसाहित्यका कोई संबंध नहीं है । इन अवैदिक शिवागमोंने जिस उपासना-पद्धति का विवेचन, अथवा जित आचार-धर्मका निरूपण किया है, उससे वचनकारों की उपासना-पद्धति का कोई संबंध नहीं है । दक्षिणके शवोंने कामिकादि २८ शिवागों के आधार पर अपनी उपासना तथा प्राचार-धर्मका प्रवर्तन किया है ये अदालमियागम वैदिक माने जाते हैं। यहाईत शिवागम इस प्रकार है (१) कामिक, (२) लोजग,) (3) जिन्य, (४) कारण, (५) अजित, (६) दीप्ति, (७) मूम, (e) नाम, (६) अंगुमान, (१०) विजय, (११) निस्वान, (१२) स्वायंभुव (१३)जमल, (१४) सीर, (१५) शल, (१६) मुकुट -(१७) विमल, (१८)
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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