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________________ वचन-साहित्य-परिचय श्री बसवेश्वरका कार्य-क्षेत्र और प्रभाव अत्यंत विस्तृत था। केवल धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं, अन्य क्षेत्रोंमें भी उनका अभूतपूर्व प्रभाव पाया जाता है । वह केवल तत्त्व-चिंतक नहीं थे । प्रयोगकर्ता भी थे । उन्होंने तत्वज्ञानसे धर्माचरण पर, धर्माचरणसे नीतिकी प्रस्थापना पर, नीतिकी प्रस्थापनासे समाज-सुधारपर, और समाज-सुधारसे वैयक्तिक चारित्र्य-शुद्धि पर अधिक जोर देने में अपनी दूर दृष्टिका ही परिचय दिया है । इसी प्रकार तत्त्व-चितनमें भी भक्ति, ज्ञान, कर्म, ध्यान पादिका समन्वय करके सर्वापरणजन्य साक्षात्कारके स्वानुभव पर अधिक जोर देना उनका वैशिष्ट्य था। इसमें संशय नहीं कि अंतिम समय तक उनको सभी शिवशरणोंका भी संपूर्ण सहयोग मिला। फिर भी जो महान कार्य हुआ, उसके सूत्रधार वंही थे । उस युगमें पाई जानेवाली उस महान धर्मजागृति और धर्म-प्रवर्तनका मध्य-बिंदु वही थे । उनके जीवनकी प्रत्येक घटना उनके विनयातिशय, उनकी सर्वात्म प्रतीति,उनकी एकांत निरहेतुक भक्ति, उनकी उज्ज्वल कर्तृत्वशक्ति, धर्माचरणमें पाई जानेवाली उनकी दक्षता आदिका सुदरतम प्रदर्शन करती है । उनके जीवनकी छोटी-छोटी घटनाओंके विषयमें जितना लिखा जाय उतना थोड़ा है । __ एक बार उनके घरमें चोर आये । उन चोरोंने बसवेश्वरकी पत्नीके पहने हुए गहने उतारनेके लिए हाथ डाला। वह बेचारी चीखी। सारी वातें बसवेश्वरकी समझमें आने में देर नहीं लगी। उन्होंने कहा, "अरी ! अपने गहने उतार कर उसे दे डाल । नहीं तो छीनते समय उसके हाथमें दर्द होगा पगली ! अाखिर वह भी कूडल संगम देवका ही रूप है !" वसवेश्वरकी अहिंसावृत्ति और अस्तेयवृत्तिका यह रूप था। वैसे ही सर्वात्मभाव और अपूर्व सहनशक्तिका भी इसमें दर्शन होता है। उनके वचन, साहित्यकी दृष्टिसे मानो मधु-मिश्रित दूध ही हैं। उनके वचनोंमें भक्तिके सभी भाव पाये जाते हैं। उनकी दृष्टिसे नवविध भक्तिका अर्थ हैनित्य नये-नये भावांकुरोंसे पल्लवित होने वाली भक्ति । वसवेश्वरके वचनोंमें जिस प्रकार उनके अपने जीवन के अन्यान्य पहलुअोंका प्रतिविम्ब पड़ता है उतना और किसी वचनकारका नहीं । जैसे उनके वचन साहित्य-सागरकी उमड़-उमड़ कर आनेवाली तरंगे हैं, वैसे ही उनका जीवन खिले हुए सुन्दर गुण-समुच्चयकी वाटिका है । वे कन्नड़ भाषाके अनुपम, अद्भुत, अत्युच्च गुणोंके सजीव मूर्तिमान आदर्श हैं। उनके सामने प्रत्येक कन्नड़ भापी मनुष्यका मस्तक नम्रता और कृतज्ञतासे झुका हुअा रहेगा। उनके करीव १,००० वचन प्रकाशित हुए हैं। उनमें आध्यात्मिक विचारोंके साथ नैतिक और सामाजिक विचारवाले वचन भी बड़े मार्मिक हैं । उन वचनों
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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