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________________ वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व श्रोर जीवन-परिचय ५३ की साहित्यक उत्कृष्टताका सवाल ही नहीं उठता। उसमें जो विचार हैं, वह अत्यंत उद्बोधक हैं। उनकी भाषा सरल है । उनके विचार केवल वीरशैवोंके लिए ही नहीं, समग्र मानव - कुलको दिव्यत्व की ओर पथ-प्रदर्शन करने में समर्थ हैं । उनके वचन किसी भी भाषा के साहित्य में अमर हो सकते हैं, इसमें संशय नहीं । (१२) वर्तमान कल्याण से 2 मीलपर " मोलिगेकेरी" नामका एक छोटासा देहात है । वहाँ मोलिगेय मारय्य नामके प्रसिद्ध शिवशरण की गुफा है । कहते हैं वह गुफा काफी बड़ी है और ग्राज भी जैसीकी तैसी विद्यमान है । हमारे नायक मोलिगेय मारय्य पाठकों के पूर्वपरिचित महादेवी श्रम्माके पति हैं । उनके पूर्वाश्रमके नामका कोई पता नहीं चलता । वे लकड़ी काट करके उसके गट्ठर वेचकर अपनी जीविका चलाते थे । उनके इसी उद्योगके कारण 'उनको ऊपरका नाम मिला था । अपने कायकसे जो कुछ प्राप्ति होती, उससे दासोह करते । वह अपने धर्माचरणमें दक्ष थे । अत्यंत नियमित रूपसे गुरु-लिंग-जंगमपूजा करते । 'शून्य सम्पादने' का तेरहवाँ अध्याय 'मारय्यन सम्पादने' नामसे है । उसमें लिखा है - यह काश्मीरके राजा थे । यदि यह सत्य है तो जैसे इनका त्याग महान् एवं अपूर्व कहना होगा वैसे ही यह भी मानना होगा कि वसवेश्वर - की कीर्तिकी सुगन्ध काश्मीर तक फैली थी । यह असम्भव नहीं है । इससे कुछ काल पूर्व चालुक्य विक्रमकी कीर्ति सुनकर बिल्लरण कवि काश्मीरसे कर्नाटक आये थे | वैसे ही वसवेश्वरकी कीर्ति सुनकर ये भी आये हों । कविचरितकारने इनके विषय में लिखते समय लिखा है, “ये मांडव्य पुरके राजा थे ।" उनकी धर्मपत्नी से जो बातें होती हैं उन बातों में भी वह कहती है, "तुम सकल देश, कोश, वास, भंडार, छोड़कर ग्रानेकी बात कहकर " त्यागका ग्रहंकार मत -करो !” पत्नीकी कही हुई इन बातोंसे भी उनके त्यागकी कल्पना होती है । 1 इनके जीवनकी एक घटना बड़ी उद्बोधक है । एक बार कुछ शिवशरण दासोहके लिए उनके घर गये । वह चावलकी 'गंजी' पी रहे थे । गंजीका अर्थ है, चावलका पतला-सा भात । थोड़े-से चावल के दाने मिलायी हुई मांड ! उन्होंने वही शरणों को खिलाया । शिव शरणोंने अमृत मान कर उसका सेवन किया । - वसवेश्वर के पास आ करके उस गंजीकी बात कहकर उसकी तारीफ की ! सुनकर वसवेश्वर पसीजे । चोरी-चोरी उनके घर गये। उनसे और उनकी पत्नी से छिपाकर बसवेश्वर ने कुछ धन उनके घरमें रखा। कुछ दिनके वाद जब धन हाथ लगा तो उन दोनोंको इस बातका रहस्य जाननेमें कोई देर नहीं १ मोलिगे = लक्कड के गट्ठर; मारथ्य = बेचनेवाला ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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