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________________ वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन-परिचय ५१ पहले से भी वचनकारोंमें अस्पृश्य जाति के लोग थे । शिव-दीक्षा लिए हुए शरणों में जात-पातका कोई बंधन नहीं होता था । " जिसके वदनपर शिवलिंग है वह शिवका ही स्वरूप है," यह भावना थी । इन्हीं दिनोंमें हरलय्य और मधुवय्य नामक चमार और ब्राह्मण जातिके दो सज्जनोंने अपना जाति- बंधन तोड़कर शैव-दीक्षा ली। ब्राह्मण शिवशरणने कहा, "ब्राह्मणसे चांडाल तक सब शिवशरण एक हैं !" और अपनी पुत्र वधूके रूपमें चमारकन्याको स्वीकार किया ! चन्नबसवने खुले शब्दोंमें इसका समर्थन किया । परिणामस्वरूप समाजमें तहलका मच गया । धर्म ध्वजोंने शोर मचाया, "यह अधर्म है । इससे वर्णसंकर हो जाएगा ।" विज्जलके कान भरने वालोंको एक नया साधन मिला। उन्होंने विज्जल को भड़काया । राजाने हरलय्य- मधुवय्यको अत्यंत क्रूरतासे मरवा दिया । इससे शिवशरण भड़के । उन्होंने बिज्जलको इसकी सजा देनेका निश्चय किया । अहिंसामूर्ति बसवेश्वर ने अपने अनुयायियों को समझानेकी पराकाष्ठा की। किंतु विकृत मस्तिष्क में विवेकका उदय नहीं हुआ । उनके उपदेशसे कोई काम नहीं बना । बसवेश्वर ने देखा, "अब मेरे वचनोंका कोई प्रभाव नहीं रहा । मेरा अवतारकार्य समाप्त हुआ ।" वे कल्याण छोड़कर कूडल संगम चले गये । उनके कल्याणसे चले जाते ही विज्जल राजाका वध कर दिया गया । यह सुनते ही बसवेश्वरने “एक शरण के अभिमान से जगदेवने विज्जलका वध किया होगा" • 1 " आदि कहा । जगदेव तो वसवेश्वर के अनुयायी थे और बिज्जल उनका - भौतिक जगतका स्वामी । इसलिए संभवतः उन्होंने अपने अनुयायियों के पापका प्रायश्चित करना आवश्यक समझा हो । उन्होंने शिवसे प्रार्थनाकी, ग्रव बस कर मेरे बाबा | मुझे (अपने पास) स्थान दो । यह वसव ( तेरे चरणों में ) प्राया "कह कर नाशवान शरीरको संगममें त्याग कर वे लिंगैक्य हो गये । श्रागमोक्त शैव मत कर्नाटक में प्रत्यन्त प्राचीन कालसे था । किंतु बसवेश्वर के काल में षट्स्थल, अष्टावरण, पंचाचार आदिसे युक्त वीर- शैत्रमत उभर आया । वसवेश्वर के विषयमें शून्य संपादनकारोंने लिखा है, वसवेश्वरने अपने समय के शैव, वैष्णव, चार्वाक, बौद्ध, क्षपण, नैयायिक, प्रभाकर, मीमांसक, वैशेषिक, कापालिक, सांख्य, कर्मवाद, कालवाद, मंत्रवाद, मायावाद, कोलमत, कालमुख, शाक्त, सौर, और भाट्ट गौमत ऐसे बीस मतोंका खंडन करके वीर-शैव मतका प्रचार किया । अन्य सब वचनकारोंने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है । यह स्वाभाविक ही है । किसी वचनकार ने कहा है, "एक वार वसवेश्वर के घर में प्रवेश किया कि उस व्यक्तिका उद्धार अनिवार्य है ।"
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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