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________________ ३ वचन-साहित्य परिचय वैराग्य होता, अगर तुम्हारे भाव सच्चे होते तो अपने लज्जा-द्वार को बालोंसे इस तरह ढक लेने की क्या आवश्यकता थी!" किसी नवयौवना स्त्रीके लिए यह प्रश्न कितना मर्मातक था। उस समयका वर्णन करते समय कविने लिखा है-"उसने अपने बालोंसे लज्जा द्वार ढक लिया था !" ___ अक्क महादेवीका उत्तर भी उतना ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी था । वह कहती हैं, 'मुझे इस शरीरकी परवाह नहीं है। यह मुझीकर काला पड़ा तो क्या और विद्युल्लताकी तरह चमक उठा तो क्या ? किंतु कामकी मुद्रिकासे तुम्हें दुःख-दर्द न हो, इसलिए वालोंसे छिपा लिया !" इसी प्रकार यह प्रश्नोपनिषद् चलता गयो । आखिर अल्लम प्रभु जैसे सिद्ध पुरुषने भी अक्क महादेवीके दिव्यज्ञान और अनुभव को देखकर चकित होते हुए कहा, "स्त्रीके रूपके अलावा और सब कुछ परम तत्त्व में विलीन-सा है।" ___ इसके बाद ही अनुभव मंटपके आचार्योंने मुंह खोला । बसवेश्वरने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा, "अपने ब्रह्माचरणसे उसने अपने आपको भुला दिया है।" ___ अनुभव-मंटपके प्राचार्यों द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर अक्कमहादेवी परम नम्र बन गयीं। उन्होंने कहा, "मैं तो इस संसारकी पुतली हूं। अपनी भूलों को स्वीकार करने में ही अपना हित है ।" फिर उन्होंने कहा, "श्रीगंध-(चंदन) काटकर तराशकर पीसनेसे दुःखी, कष्टी होकर क्या अपनी सुगंध छोड़ देगा ?" ____ अक्कमहादेवीने स्वयं वसवेश्वर, अल्लम प्रभु, चन्नवसव आदिका पादरके साथ उल्लेख किया है। एक जगह चन्नवसबने अक्कमहादेवीके अधिकार और महत्त्वके विषयमें कहा है, "वह तो सदासर्वदा चन्नसंगय्यमें विलीन होकर विना अलगाव के रहती है। उसका एक वचन पाद्योंके साठ वचनोंके समान, दण्णायकके बीस वचनोंके समान, अल्लम प्रभुके दस वचनोंके समान और अजगण्णके पांच वचनोंके समान है !" इस अवस्थामें, अतीव व्याकुलतामें किया हुआ उनका भगवानका वर्णन (साहित्यिक दृष्टिसे) अत्यंत मधुर, मोहक और हृदयंगम हैं । सीता-हरणके वाद रामायणमें जैसे राम अकुलाते हुए वृक्ष-लतानोंसे सीता के विषयमें पूछते हैं वैसे ही अक्कमहादेवी उस भगवान के विषय में पूछती हैं, "तुमने देखा है क्या मेरे चन्नमलिकार्जुन को ? देखा हो तो वतारी !" १. मूलवचनः ननगे कायद परिवेयिल्ला नन्न काय करने कंदिदर अष्टे मिलने मिचिदर अष्टे ! श्रादरे कामन मुद्रिकेयिंद निमगे नोवादीव भावनेयिंद एन्न वृदल मरे माडिदे । नोव-दुःख, दर्द
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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