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________________ . वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन परिचय ....... ३१) "भिन्न भाषा बोलनेवाले साधक वहां थे। मोलिगये' मारय्या इस नामसे प्रसिद्ध साधक काश्मीरका राजा था । वह अपना देश, कोश, वास, भंडार आदि का • सुख त्याग कर आया था, इसको आधार मिलता है । वैसे ही सकैलेश मादरस · कल्कुरीका राजा था। आदय्या गुजरात-सौराष्ट्रका व्यापारी था। इसके साथ ही साथ अनुभव-मंटपकी ज्ञान-चर्चामें जो नाम आते हैं उनके नामोंका ही विचार करनेसे पता चलेगा कि वहां कैसे लोग आते थे। वहां जो आते थे उनमें मोलिगये मारय्या, सकलेश मादरस, बसवेश्वर, अक्क महादेवी जैसे राजा, महाराजा, रानी, प्रधान आदि तो थे ही, उनके साथ-साथ बेडर दासिमय्या, मडिवाल माचय्या, मेदार केतकय्या, हडपद्दप्पण", अंबिगर चौडय्या, ढक्केय बोम्मण्ण", सुंकद बंक्करण, प्रोक्कलु मुच्चय , मादर चन्नय', डोहर कक्कैय११, गाणद कंण्णप्प' २ सूजिकायकद रामी नंदे, वैश्य संगण, आदि सब अनुभव-मंटपकी ज्ञान-चर्चा में पाए जाते हैं । अनुभव-मंटप-- में जाति-पांतिका भेद-भाव नहीं था, यह कहनेके लिए ये सब नाम ही पर्याप्त हैं। अनुभव-मंटपमें लौकिक और भौतिक दृष्टिकोणसे किसी प्रकारकी ऊंच-- नीचकी गंध भी नहीं थी। बसवेश्वरने कहा है "सव एक ही ईश्वरकी संतान होनेसे सबमें बन्धुता स्वाभाविक है। इसी स्वाभाविक वंधुत्वके बंधनमें वे सब आवद्ध थे । इसी स्वाभाविक बंधुत्वके आधार पर वह सबके लिए समानरूप सर्वान्तर्यामीके विषय में चर्चा करते । उसकी खोज करते । उसकी पूजा करते । उसके साक्षात्कारका प्रयास करते । वचनकारोंका सबसे सुसंघटित सुदृढ़ संघ अगर कहीं देखा जा सकता है तो वह अनुभव-मंटपमें ही देखा जा सकता है ।। यदि संतोंकी सामूहिक साधनाका इतना सुन्दर रूप कहीं देखा जा सकता है तो वह भी अनुभव-मंटपमें ही देखा जा सकता है। एक ही एक लक्ष्य रख कर,. भिन्न-भिन्न प्रकारकी साधना करनेवाले, भिन्न भिन्न जाति तथा भिन्न-भिन्न योग्यताके लोगोंमें होनेवाली इस ज्ञान-चर्चासे वचन-साहित्यमें जो एक प्रकारकी अपूर्वता आई है वह अन्य किसी साहित्यमें नहीं पाई जाती। साथ-साथ अनेक लोगोंकी ओरसे अलग-अलग स्थान, काल और प्रसंगोंमें कहे गये जो १. लकड़ी बेचनेवाला; २. शिकारी दासिमय्या; ३. धोबी माचव्या; ४. टोकरी बुननेवाला केतकय्या=मेदार जाति अंत्यजोंकी है; ५. नाई अप्पएण; ६. नाव खेनेवाला चौडव्या; ७. ढोल बजानेवाला वोमएण; ८. चुंगी उगाहने वाला बक्करण; ६. किसान मुच्चय; १०. डोम चन्ने य; ११. चांडाल (१) कक्कैय; १२. कोल्हू चलानेवाला करणप्प, १३. दर्जी “रामीका बापः ...
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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