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________________ साधनामार्ग--जान, भक्ति, निया, ध्यानका संबंध २५७ वृक्ष लत बने ? उसपर पत्थर रखने वाला गुरुदेव बना क्या? ऐसे लोगोंको देखकार में ला जाता गहेम्यरा । (३५६) वा वस्तुप्रोंको लेकर उनकी पूजा करते करते लोग सब बाहर ही पड़ गए ! यह रहस्य न जानते हुए लिंगकी पूजा करके पूजा करने वाला हारही निगमें फंस गया । दमनसे सतत तुम्हारा स्मरणा करनेो शरीर भी उसमें विलीन होगा गहेश्वरा। (३५७) मन एकाग्र न होने से नार्म कार-करके मर गए, दे देकर दब गए सत्यानुभव न होनेरो । प्रात्म गुणो करने, योर देने वालोग मिलकर रहता है मार डलसंगमदेवा। विवेचन---गुद्ध भाव, उत्कट भक्ति, सच्चा ज्ञान, एकाग्रचित्त इनके प्रभाव में भारी रगत कम व्यर्थ है। ऐसी स्थिति में मनुष्यकी सब क्रियाएं यांत्रिक हो जाती है, इसलिए यह जद है। इसका यह अर्थ नहीं है कि पूजादि कर्म नहीं पारने पाहिए। किंतु वचनकारोंने यह जोर देकर कहा है कि निराकार निगंगा परमात्माका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए सगुण रूपकी पूजा-उपासना सादिकी यावश्यक्ता गितु वह केवल गरीरगत कम नहीं होना चाहिए। वचन-(३५८) ऊंचे गढ़ते समय बिना सीढ़ीफे नहीं चढ़ना चाहिए, निप जानने के लिए नित्य नियम विना पूजा अर्चा लिए नहीं रहना चाहिए। मनाईने साथ पूजा अर्चा काय असत्यको भूलने वही सत्य है नास्तिनाया। (३५६) भोजन करके मुनगंटलकी सवारी निकाली कहनेवालेकीसी मूर्यता मेरी माना जानने के लिए प्रतीक दिया तो यह प्रतीक है यह मूलपार "सय जाना" बह वाले लोगो देश जांभेश्वरा। विपी:--पानको अगोचर परमात्माको जाननेके लिए प्रतीक दिया तो जगमोहो गयर मान चटना पूर्णता नहीं तो घोर रया है ? साधकको मला मान, गणित, एकाग्रनित सादिको बताकरमिति प्राप्त करनेगा (६०) मिरा मोही गंगार मास टंगा ना पहने वाले विशेष माना भी ii ? पोषिः ज्योतिष स्मरगामे हो are free ? मनमरणमे गा पेट भरता ? भाक दिया मिटेगी नाम मेरी मन नहीं पाया। ATM सं. र मिलना चाहिए मगर सिद्धबर ! माननियमिपमान
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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