SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 943
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • नृसिंहावतार एवं प्रहादजीकी कथा • ९४३ . . . भावको सूचना दे रही थी। उनके बालोंसे आगकी लपटें राजकुमार प्रह्लादके नेत्रोंसे आनन्दके आँसू बह चले। निकल रही थीं। क्रोधसे जलती हुई अँगारे-जैसी उनका सर्वाङ्ग अश्रुजलसे अभिषिक्त होने लगा और वे लाल-लाल आँखें अलातचक्रके समान घूम रही थीं। बारम्बार श्रीहरिके चरणोंमें प्रणाम करने लगे। हजारों बड़ी-बड़ी भुजाओंमें सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्र दैत्यराज हिरण्यकशिपु सिंहको सामने आया देख लिये भगवान् नरसिंह अनेक शाखावाले वृक्षोंसे युक्त क्रोधवश युद्धके लिये तैयार हो गया। वह मृत्युके मेरुपर्वतके समान जान पड़ते थे। उनके अङ्गोंमें दिव्य अधीन हो रहा था। इसलिये हाथमें तलवार लेकर मालाएँ, दिव्य वस्त्र और दिव्य आभूषण शोभा पाते थे। भगवान नृसिंहकी ओर दौड़ा। इसी बीचमें महाबली दैत्य भगवान् नरसिंह सम्पूर्ण दानवोंका संहार करनेके लिये भी होशमें आ गये और वे अपने-अपने आयुध लेकर वहाँ खड़े हुए। भयानक आकृतिवाले महाबली बड़ी उतावलीके साथ श्रीहरिपर प्रहार करने लगे। नरसिंहको उपस्थित देख दैत्यराज हिरण्यकशिपुकी दैत्योंकी उस सेनाको देखकर भगवान् नरसिंहने अपनी आँखोकी बरौनियाँ जल उठीं। उसका सारा शरीर अयालसे निकलती हुई लपटोंके द्वारा उसे जलाकर भस्म व्याकुल हो गया। और वह अपनेको संभाल न सकनेके कर दिया । समस्त दानव उनकी जटाको आगसे जलकर कारण पृथ्वीपर गिर पड़ा। राखकी ढेर हो गये। प्रहाद और उनके अनुचरोंको उस समय प्रह्लादने भगवान् जनार्दनको नरसिंहको छोड़कर दैत्यसेनामें कोई भी नहीं बचा। यह देख आकृतिमें उपस्थित देख जय-जयकार करते हुए उनके दैत्यराजने क्रोधमें भरकर तलवार खींच ली और भगवान् चरणोंमें मस्तक झुकाया और उन महात्माके अद्भुत नरसिंहपर धावा किया; किन्तु भगवान्ने एक ही हाथसे अङ्गोपर दृष्टिपात किया। उनकी गर्दनके बालों में कितने तलवारसहित दैत्यराजको पकड़ लिया और जैसे आँधी ही लोक, समुद्र, द्वीप, देवता, गन्धर्व, मनुष्य और हजारों वृक्षकी शाखाको गिरा देती है, उसी प्रकार उसे पृथ्वीपर अण्डज प्राणी दिखायी देते थे। दोनों नेत्रोंमें सूर्य और दे मारा । पृथ्वीपर पड़े हुए उस विशालकाय दैत्यको चन्द्रमा आदि तथा कानोंमें अश्विनीकुमार और सम्पूर्ण भगवान् नरसिंहने फिर पकड़ा और अपनी गोदमें रखकर दिशा एवं विदिशाएँ थीं। ललाटमें ब्रह्मा और महादेव, उसके मुखकी ओर दृष्टिपात किया। उसमें श्रीविष्णुकी नासिकामें आकाश और वायु, मुखके भीतर इन्द्र और निन्दा तथा वैष्णवभक्तसे द्वेष करनेका जो पाप था, वह अग्नि, जिलामें सरस्वती, दाढ़ोंपर सिंह, व्याघ्र, शरभ और भगवान्के स्पर्शमात्रसे ही जलकर भस्म हो गया। बड़े-बड़े साँपोका दर्शन होता था। कण्ठमें मेरुगिरि, तत्पश्चात् भगवान् नृसिंहने दैत्यराजके उस विशाल कंधोंमें महान् पर्वत, भुजाओंमें देवता, मनुष्य और शरीरको वज्रके समान कठोर और तीखे नखोसे विदीर्ण पशु-पक्षी, नाभिमें अन्तरिक्ष और दोनों पैरोंमें पृथ्वी थी। कर डाला। इससे दैत्यराजका अन्तःकरण निर्मल हो रोमावलियोंमें ओषधियाँ, नखोंमें सम्पूर्ण विश्व और गया। उसने साक्षात् भगवानका मुख देखते हुए प्राणोंका निःश्वासोंमें साङ्गोपाङ्ग वेद थे। उनके सम्पूर्ण अङ्गोमें परित्याग किया। इसलिये वह कृतकृत्य हो गया। महान् आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेव, मरुद्गण, गन्धर्व तथा नृसिंहरूपधारी श्रीहरिने अपने तीखे नखोंसे उसकी देहके अप्सराएँ दृष्टिगोचर होती थीं। इस प्रकार उन सैकड़ों टुकड़े करके उसकी लम्बी आत बाहर निकाल परमात्माकी विभूतियाँ दिखायी दे रही थीं। उनका लीं और उन्हें अपने गलेमें डाल लिया। वक्षःस्थल श्रीवत्सचिह्न, कौस्तुभमणि और वनमालासे तदनन्तर, सम्पूर्ण देवता और तपस्वी मुनि ब्रह्मा विभूषित था। वे शङ्ख, चक्र, गदा, खड्ग और शार्ङ्गधनुष तथा महादेवजीको आगे करके धीरे-धीरे भगवान्की आदि अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न थे। सम्पूर्ण उपनिषदोंके स्तुति करनेके लिये आये। उस समय सब ओर अर्थभूत भगवान् श्रीविष्णुको उपस्थित देख दैत्य- मुखवाले भगवान् नृसिंह क्रोधाग्निसे प्रज्वलित हो रहे
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy