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________________ उत्तरखण्ड ] . . यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन . .... भी दुर्लभ नहीं है। उन्हें यहाँ ही परम मोक्ष मिल जाता यमलोकका दर्शन नहीं करते। है और पर्याप्त भोगसामग्री भी सुलभ होती है। बान्धवो ! यदि तुमलोग संसार-बन्धनसे छुटकारा भारतवर्षको कर्मभूमि कहा गया है। अन्य जितनी पाना चाहते हो तो सच्चिदानन्दस्वरूप परमदेव भूमियाँ है, वे भोगभूमि मानी जाती हैं। यहाँ यति तपस्या श्रीनारायणकी आराधना करो। यह चराचर जगत् और याजक यज्ञ करते है तथा यहीं पारलौकिक सुखके आपलोगोंकी भावना-संकल्पसे ही निर्मित है, इसे लिये श्रद्धापूर्वक दान दिये जाते हैं। कितने ही धन्य पुरुष बिजलीकी तरह चञ्चल-क्षणभङ्गर समझकर यही माघस्रान करते तथा तपस्या करके अपने कर्मोक श्रीजनार्दनका पूजन करो। अहंकार विद्युत्को रेखाके अनुसार ब्रह्मा, इन्द्र, देवता और मरुद्गणोंका पद प्राप्त समान व्यर्थ है, इसे कभी पास न आने दो। शरीर मृत्युसे करते हैं। यह भारतवर्ष सभी देशोंसे श्रेष्ठ माना गया है; जुड़ा हुआ है, जीवन भी चञ्चल है, धन राजा आदिसे क्योंकि यहीं मनुष्य धर्म तथा स्वर्ग और मोक्षको सिद्धि प्राप्त होनेवाली बाधाओंसे परिपूर्ण है तथा सम्पत्तियाँ कर सकते है। इस पवित्र भारतदेशमें क्षणभङ्गर मानव- क्षणभङ्गर हैं। माताओ ! क्या तुम नहीं जानतीं, आधी जीवनको पाकर जो अपने आत्माका कल्याण नहीं आयु तो नींदमें चली जाती है? कुछ आयु भोजन करता, उसने अपने-आपको ठग लिया। मनुष्योंमें भी आदिमें समाप्त हो जाती है। कुछ बालकपनमें, कुछ अत्यन्त दुर्लभ ब्राह्मणत्वको पाकर जो अपना कल्याण बुढ़ापेमें और कुछ विषय-भोगोंके सेवनमें ही बीत जाती नहीं करता, उससे बढ़कर मूर्ख कौन होगा। कितने ही है; फिर कितनी आयु लेकर तुम धर्म करोगी। बचपन कालके बाद जीव अत्यन्त दुर्लभ मानवजीवन प्राप्त और बुढ़ापेमें तो भगवान्के पूजनका अवसर नहीं प्राप्त करता है; इसे पाकर ऐसा करना चाहिये, जिससे कभी होता; अतः इसी अवस्थामें अहङ्कारशून्य होकर धर्म नरकमें न जाना पड़े। देवतालोग भी यह अभिलाषा करो। संसाररूपी भयङ्कर गड्डेमें गिरकर नष्ट न हो करते हैं कि हमलोग कब भारतवर्ष में जन्म लेकर जाओ। यह शरीर मृत्युका घर है तथा आपत्तियोंका माघ मासमें प्रातःकाल किसी नदी या सरोवरके जलमें सर्वश्रेष्ठ स्थान है; इतना ही नहीं, यह रोगोंका भी गोते लगायेंगे। देवता यह गीत गाते हैं कि जो लोग निवासस्थान है और मल आदिसे भी अत्यन्त दूषित देवत्वके पश्चात् स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्तिके मार्गभूत रहता है। माताओ ! फिर किसलिये इसे स्थिर समझकर भारतवर्षके भूभागमें मनुष्य-जन्म धारण करते हैं, वे तुम पाप करती हो। यह संसार निःसार है और नाना धन्य हैं। हम नहीं जानते कि स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाले प्रकारके दुःखोंसे भरा है। इसपर विश्वास नहीं करना अपने पुण्यकर्मके क्षीण होनेपर किस देशमे हमें पुनः देह चाहिये; क्योंकि एक दिन तुम्हारा निश्चय ही नाश धारण करना पड़ेगा। जो भारतवर्षमें जन्म लेकर सब होनेवाला है। बान्धवो! तुम सब लोग सुनो। हम इन्द्रियोंसे युक्त है-किसी भी इन्द्रियसे हीन नहीं हैं, वे बिलकुल सही बात बता रही है। शरीरका नाश ही मनुष्य धन्य हैं; अतः माताओ! तुम भय मत करो, बिलकुल निकट है; अतः श्रीजनार्दनका पूजन अवश्य भय मत करो। आदरपूर्वक धर्मका अनुष्ठान करो। करना चाहिये। सदा ही श्रीविष्णुकी आराधना करते जिनके पास दानरूपी राहखर्च होता है, वे यमलोकके रहो। यह मानव-जीवन अत्यन्त दुर्लभ है। बन्धुओ! मार्गपर सुखसे जाते हैं; अन्यथा उस पाथेयरहित पथपर स्थावर आदि योनियोंमें अरबों-खरबों बार भटकनेके जीवको केश भोगना पड़ता है। ऐसा जानकर मनुष्य बाद किसी तरह मनुष्यका शरीर प्राप्त होता है। मनुष्य पुण्य करे और पाप छोड़ दे। पुण्यसे देवत्वकी प्राप्ति होती होनेपर भी देवताओंके पूजन और दानमें मन लगना तो है और अधर्मसे नरकमें गिरना पड़ता है। जो किश्चित् भी और भी कठिन है। माताओ ! योगबुद्धि सबसे दुर्लभ देवेश्वर भगवान् श्रीहरिकी शरणमें गये हैं, वे भयङ्कर है। जो दुर्लभ मनुष्य-शरीरको पाकर सदा ही श्रीहरिका
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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