SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 900
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अयस्वाषीकेशी यदीच्छसि परं पदम् .. [संक्षिप्त पयपुराण पूजन नहीं करता, वह आप ही अपना विनाश करता है। क्या लेना है? इसलिये तुमलोग भय छोड़कर उससे बढ़कर मूर्ख कौन होगा? तुमलोग दम्भका श्रीकेशवकी आराधना करो। शालग्रामशिलाका निर्मल आचरण छोड़कर चक्रसुदर्शनधारी भगवान् विष्णुकी एवं शुद्ध चरणामृत पीओ तथा भगवान् विष्णुके दिनपूजा करो। हमलोग बारम्बार भुजाएँ उठाकर तुम्हारे एकादशीको उपवास किया करो। हितकी बात कहती हैं। सर्वथा भक्तिपूर्वक भगवान् जब सूर्य मकर-राशिपर स्थित हों, उस समय विष्णुका पूजन करना चाहिये और मनुष्योंके साथ प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करो; साथ ही पतिकी सेवामें ईर्ष्याका भाव छोड़ देना चाहिये। सबके धारण करनेवाले लगी रहो। नरकका भय तो तुम्हें दूरसे ही छोड़ देना जगदीश्वर भगवान् अच्युतकी आराधना किये विना चाहिये; क्योंकि सब पापोंका नाश करनेवाली परम पवित्र संसार-सागरमें डूबे हुए तुम सब लोग कैस पार एकादशी तिथि प्रत्येक पक्षमें आती है। फिर तुम्हें जाओगे? माताओ! अधिक कहनेकी क्या नरकसे भय क्यों हो रहा है? घरसे बाहरके जलमें स्नान आवश्यकता? हमारी यह बात सुनो-जो प्रतिदिन करनेसे पुण्य प्रदान करनेवाला माघ मास भी प्रतिवर्ष तन्मय होकर भगवान् गोविन्दके गुणोंका गान तथा आया करता है। फिर तुम्हें नरकसे भय क्यों होता है। नामोंका सङ्कीर्तन सुनते हैं, उन्हें वेदोंसे, तपस्यासे, वसिष्ठजी कहते हैं-राजन् ! वे कन्याएँ अपनी शास्त्रोक्त दक्षिणावाले यज्ञोंसे, पुत्र और स्त्रियोंसे, माताओंसे इस प्रकार कहकर पुनः माघस्रान, उपवास संसारके कृत्योंसे तथा घर, खेत और बन्धु-बान्धवोंसे आदि व्रत, धर्म तथा दान करने लगीं। महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार । वसिष्ठजी कहते है-राजन् ! माघस्रान और ब्राह्मण कहाँके रहनेवाले थे? वे कैसे यमलोकमें आये उपवास आदि महान् पुण्य करनेवाले मनुष्य इसी प्रकार और किस प्रकार उन्होंने नरकसे पापियोंका उद्धार दिव्य लोकोंमें जाते-आते रहते हैं। पुण्य ही सर्वत्र किया? आने-जानेमें कारण है। पूर्वकालमें विप्रवर पुष्कर भी वसिष्ठजी बोले-राजन् ! मैं महात्मा पुष्करके यमलोकमें गये थे और वहाँ बहुत-से नारकीय जीवोंको चरित्रका वर्णन करता हूँ। वह सब पापोंका नाश नरकसे निकालकर फिर यहीं आ पूर्ववत् अपने घरमें करनेवाला है। तुम सावधान होकर सुनो। बुद्धिमान् रहने लगे। त्रेतायुगमें जब भगवान् श्रीरामचन्द्रजी राज्य पुष्कर नन्दिग्रामके निवासी थे। वे सदा अपने धर्मके करते थे, तभी एक समय किसी ब्राह्मणका पुत्र मरकर अनुष्ठानमें लगे रहनेवाले और सब प्राणियोंके हितैषी यमलोकमें गया और पुनः वह जी उठा। क्या यह बात थे। सदा माघनान और स्वाध्यायमें तत्पर रहते तथा तुमने नहीं सुनी है? देवकीनन्दन श्रीकृष्णने अपने गुरु समयपर अनन्य भावसे श्रीविष्णुकी आराधना किया सान्दीपनिके पुत्रको, जिसे बहुत दिन पहले ही ग्राहने करते थे। महायोगी पुष्कर अपने कुटुम्बके साथ रहते अपना ग्रास बना लिया था, पुनः यमलोकसे ले आकर और नित्य अग्निहोत्र करते थे। राजन्, वे अप्रमेय ! हरे ! गुरुको अर्पण किया था। इसी प्रकार और भी कई मनुष्य विष्णो! कृष्ण ! दामोदार ! अच्युत ! गोविन्द ! यमलोकसे लौट आये है। इस विषयमें सन्देह नहीं अनन्त ! देवेश्वर ! इत्यादि रूपसे केवल भगवत्रामोंका करना चाहिये। अच्छा बताओ, अब और क्या सुनना कीर्तन करते थे। महामते ! देवताका आराधन छोड़कर चाहते हो? और किसी काममें उन ब्राह्मण देवताका मन स्वप्नमें भी दिलीपने पूछा-मुने । पुष्कर नामक श्रेष्ठ नहीं लगता था। एक दिन सूर्यनन्दन यमराजने अपने
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy