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________________ उत्तरखण्ड ] गण्डकी नदीका माहात्म्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदेहिक नामक स्तोत्रका वर्णन ********* LE----------------POS गण्डकी नदीके जलका दर्शन करनेसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा अन्य जातिके मनुष्य—सभी निश्चय ही मुक्त हो जाते हैं; विशेषतः पापियोंके लिये तो यह त्रिवेणीके समान पुण्यमयी है। जहाँ ब्रह्महत्यारेकी भी मुक्ति हो जाती है, वहाँ औरोंके लिये क्या कहना है ? · ७२५ गण्डकी नदीका माहात्म्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदैहिक नामक स्तोत्रका वर्णन श्रीमहादेवजी कहते हैं-देवि ! अब मैं गण्डकी नदीके माहात्म्यका विधिपूर्वक वर्णन करूंगा। पार्वती ! गङ्गाका जैसा माहात्म्य है, वैसा ही गण्डकी नदीका भी बताया गया है। जहाँसे नाना प्रकारकी शालग्राम शिला प्रकट होती है, उस गण्डकी नदीकी महिमाका बड़े-बड़े मुनियोंने वर्णन किया है। अण्डज, उद्भिज्ज, स्वेदज और जरायुज- सभी प्राणी उसके दर्शनमात्रसे पवित्र हो जाते हैं। महानदी गण्डकी उत्तरमें प्रकट हुई है। गिरिजे! वह स्मरण करनेपर निश्चय ही सब पापका नाश कर देती है। वहाँ कल्याण प्रदान करनेवाले भगवान् नारायण सदा विद्यमान रहते हैं, ऋषियोंका भी वहाँ निवास है तथा सम्पूर्ण देवता, रुद्र, नाग और यक्ष विशेषरूपसे वहाँ रहा करते हैं। उस स्थलपर भगवान्‌की अनेक रूपवाली और सुखदायिनी चौबीस अवतारोंकी मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं। एक मत्स्यरूप है, दूसरी कच्छपरूप इसी प्रकार वाराह, नृसिंह और वामनकी भी कल्याणदायिनी मूर्तियाँ हैं। श्रीराम, परशुराम तथा श्रीकृष्णकी भी मोक्षदायिनी मूर्ति देखी जाती है। श्रीविष्णुनामसे प्रसिद्ध उस स्थलपर उपर्युक्त मूर्तियोंके सिवा बुद्धकी मूर्ति भी बतायी गयी है। कल्कि और महर्षि कपिलकी भी पुण्यमयी मूर्ति उपलब्ध होती है, इनके सिवा और भी भाँति-भाँतिके आकारवाली बहुत-सी मूर्तियाँ देखी जाती हैं। उन सबके अनेक रूप हैं और उनकी संख्या भी बहुत है। वह गण्डकी नामकी गङ्गा परम पुण्यमयी तथा धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली है। उस भूमिपर आज भी मेरे साथ भगवान् हृषीकेश नियमपूर्वक निवास करते हैं, उसके जलका स्पर्श करनेमात्र से मनुष्य भ्रूणहत्या, बालहत्या और गोहत्या आदि समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। पार्वती! मैं सदा हर समय वहाँ जाता रहता हूँ; वह तीर्थोंमें तीर्थराज है— यह बात ब्रह्माजीने कही थी। मुनियोंने वहाँ खान और दानका विधान किया है। भगवान् विष्णुद्वारा पूर्वकालमें निर्मित हुआ वह क्षेत्र महान् से महान् है। वह वैष्णव पुरुषोंको उत्तम गति प्रदान करनेवाला और परम पावन माना गया है। देवि ! इस संसारमें मनुष्यका जन्म सदा दुर्लभ है; उसमें भी गण्डकी नदीका तीर्थ और वहाँ भी श्रीविष्णुक्षेत्र अत्यन्त दुर्लभ है। अतः श्रेष्ठ द्विजोंको आषाढ़ मासमें वहाँकी यात्रा करनी चाहिये। वरानने! मैं बारंबार कहता हूँ कि गण्डकीके समान कोई तीर्थ, द्वादशीके तुल्य कोई व्रत और श्रीविष्णुसे भिन्न कोई देवता नहीं है। जो नरश्रेष्ठ गण्डकी नदीका माहात्म्य श्रवण करते हैं, वे इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें श्रीविष्णुधामको जाते हैं। महादेव उवाच - शृणु सुन्दरि वक्ष्यामि स्तोत्रं चाभ्युदयं ततः । यच्छ्रुत्वा मुच्यते पापी ब्रह्महा नात्र संशयः ॥ १ ॥ धाता वै नारदं प्राह तदहं तु ब्रवीमि ते । तमुवाच ततो देवः स्वयम्भूरमितद्युतिः ॥ २ ॥ प्रगृह्य रुचिरं बाहुं स्मारये चौध्वदेहिकम् । महादेवजी कहते हैं—सुन्दरी! सुनो, अब मैं अभ्युदयकारी स्तोत्रका वर्णन करूँगा, जिसे सुनकर ब्रह्महत्यारा भी निस्सन्देह मुक्त हो जाता है। ब्रह्माजीने देवर्षि नारदसे इस स्तोत्रका वर्णन किया था, वही मैं तुम्हें बताता हूँ। [पूर्वकालमें भगवान् श्रीरामचन्द्रजी जब रावणका वध कर चुके, उस समय समस्त देवता उनकी स्तुति करनेके लिये आये उसी अवसरपर] अमिततेजस्वी भगवान् ब्रह्माने श्रीरघुनाथजीकी सुन्दर बाँह हाथमें लेकर जो उनकी स्तुति की थी, वह 'और्ध्वदैहिक स्तोत्र' के नामसे प्रसिद्ध है। आज मैं उसीको स्मरण करके तुमसे कहता हूँ। | भवान्नारायणः श्रीमान् देवश्चक्रायुधो हरिः ॥ ३ ॥ शार्ङ्गधारी हृषीकेशः पुराणपुरुषोत्तमः । अजितः खड्गभिजिष्णुः कृष्णश्चैव सनातनः ॥ ४ ॥
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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