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________________ ७२६ • अर्जयस्व पीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .. [संक्षिप्त पयपुराण एकङ्गो वराहस्त्वं भूतभव्यभवात्मकः। ऋग्वेद और सामवेदमें आप ही सबसे श्रेष्ठ बताये गये अक्षरं ब्रह्म सत्यं तु आदौ चान्ते च राघव ॥ ५॥ हैं। आप सैकड़ो विधिवाक्यरूप जिलाओसे युक्त लोकानां त्वं परो धमों विपक्सेनश्चतुर्भुजः । वेदस्वरूप महान् वृषभ हैं। आप ही यज्ञ, आप ही सेनानी रक्षणस्त्वं च वैकुण्ठस्त्वं जगत्प्रभो ॥ ६॥ वषट्कार और आप ही ॐकार हैं। आप शत्रुओंको ताप श्रीब्रह्माजी बोले-श्रीरघुनन्दन ! आप समस्त देनेवाले तथा सैकड़ों धनुष धारण करनेवाले हैं। आप जीवोंके आश्रयभूत नारायण, लक्ष्मीसे युक्त, स्वयंप्रकाश ही वसु, वसुओंके भी पूर्ववर्ती एवं प्रजापति हैं। एवं सुदर्शन नामक चक्र धारण करनेवाले श्रीहरि हैं । शाङ्ग त्रयाणामपि लोकानामादिकर्ता स्वयंप्रभुः। नामक धनुषको धारण करनेवाले भी आप ही हैं। आप ही स्टाणामष्टमो रुद्रः साध्यानामपि पचमः ॥ १०॥ इन्द्रियोंके स्वामी एवं पुराणप्रतिपादित पुरुषोत्तम हैं। आप अश्विनौ चापि कौँ ते सूर्यचन्द्रौ च चक्षुषी। कभी किसीसे भी परास्त नहीं होते । शत्रुओंकी तलवारोंको अन्ते चादौ च मध्ये च दृश्यसे स्वं परन्तप ॥११॥ टूक-टूक करनेवाले, विजयी और सदा एकरस रहने- प्रभवो निधनं चासि न विदुः को भवानिति । वाले-सनातन देवता सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण भी दृश्यसे सर्वलोकेषु गोषु च ब्राह्मणेषु च ॥ १२ ॥ आप ही हैं। आप एक दाँतवाले भगवान् वराह हैं। भूत, दिक्षु सर्वासु गगने पर्वतेषु गुहासु च। भविष्य और वर्तमान-तीनों काल आपके ही रूप हैं। सहस्रनयनः श्रीमाशतशीर्षः सहस्रपात् ॥ १३ ॥ श्रीरघुनन्दन ! इस विश्वके आदि, मध्य और अन्तमें जो आप तीनों लोकोंके आदिकर्ता और स्वयं ही अपने सत्यस्वरूप अविनाशी परब्रह्म स्थित है, वह आप ही हैं। प्रभु (परम स्वतन्त्र) हैं। आप रुद्रोंमें आठवें रुद्र और आप ही लोकोंके परम धर्म हैं। आपको युद्धके लिये तैयार साध्योंमें पांचवें साध्य हैं। दोनों अश्विनीकुमार आपके होते देख दैत्योंकी सेना दारों ओर भाग खड़ी होती है, कान तथा सूर्य और चन्द्रमा नेत्र हैं। परंतप ! आप ही इसीलिये आप विश्वक्सेन कहलाते है। आप ही चार भुजा आदि, मध्य और अन्तमे दृष्टिगोचर होते हैं। सबकी धारण करनेवाले श्रीविष्ण हैं।... उत्पत्ति और लयके स्थान भी आप ही हैं। आप कौन प्रभवश्चाव्ययस्त्वं च उपेन्द्रो मधुसूदनः। हैं-इस बातको ठीक-ठौक कोई भी नहीं जानते। पश्चिगों धृतार्चिस्त्वं पद्मनाभो रणान्तकृत् ॥७॥ सम्पूर्ण लोकोमे, गौओंमें और ब्राह्मणोंमें आप हो शरण्यं शरणं च त्वामाहुः सेन्द्रा महर्षयः। दिखायी देते हैं तथा समस्त दिशाओंमें, आकाशमें, ऋक्सामश्रेष्ठो वेदात्मा शतजिलो महर्षभः ॥ ८॥ पर्वतोंमें और गुफाओंमें भी आपकी ही सत्ता है। आप त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कारस्त्वमोंकारः परन्तपः। शोभासे सम्पन्न है। आपके सहस्रों नेत्र, सैकड़ों मस्तक शतधन्वा वसुः पूर्व वसूनां त्वं प्रजापतिः ॥९॥ और सहस्रों चरण हैं। आप सबकी उत्पत्तिके स्थान और अविकारी हैं। त्वं भारयसि भूतानि वसुधां च सपर्वताम् । इन्द्रके छोटे भाई वामन एवं मधु दैल्यके प्राणहन्ता अन्तःपृथिव्यां सलिले दृश्यसे त्वं महोरगः ॥ १४ ॥ श्रीविष्णु भी आप ही हैं। आप अदिति या देवकीके त्रील्लोकान्धारयन् राम देवगन्धर्वदानवान् । गर्भमें अवतीर्ण होनेके कारण पृश्निगर्भ कहलाते हैं। आप सम्पूर्ण प्राणियोंको तथा पर्वतोसहित पृथ्वीको आपने महान् तेज धारण कर रखा है। आपकी ही भी धारण करते हैं। पृथ्वीके भीतर पाताललोकमें और नाभिसे विराट् विश्वकी उत्पत्तिका कारणभूत कमल प्रकट क्षीरसागरके जलमें आप ही महान् सर्प-शेषनागके हुआ था। आप शान्तस्वरूप होनेके कारण युद्धका अन्त रूपमें दृष्टिगोचर होते हैं। राम ! आप उस स्वरूपसे करनेवाले हैं। इन्द्र आदि देवता तथा सम्पूर्ण महर्षिगण देवता, गन्धर्व और दानवोंके सहित तीनों लोकोंको आपको ही सबका आश्रय एवं शरणदाता कहते हैं। धारण करते हैं।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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