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________________ पातालखण्ड ] • शत्रुनके बाणसे लवकी मूर्छा, कुशका रणक्षेत्रमें आना, कुश और लवकी विजय • ५३५ . . . . . . . . . . .. . . अब तुम सावधान हो जाओ ! मैं तत्काल ही तुम्हें किया त्यों ही वह महाबाण तुरंत उनको छातीमें आ पृथ्वीपर गिराता हूँ।' ऐसा कहकर कुशने अपने धनुषपर लगा। सुरथ मूर्छित होकर रथपर गिर पड़े। यह देख एक बाण चढ़ाया, जो कालाग्निके समान भयङ्कर था। सारथि उन्हें रणभूमिसे बाहर ले गया। उन्होंने शत्रुके अत्यन्त कठोर एवं विशाल वक्षःस्थलको सुरथके गिर जानेपर कुश विजयी हुए—यह देख लक्ष्य करके छोड़ दिया। कुशको उस बाणका सन्धान पवनकुमार हनुमानजीने सहसा एक विशाल शालका करते देख शत्रुघ्र कोपमें भर गये तथा श्रीरामचन्द्रजीका वृक्ष उखाड़ लिया । महान् बलवान् तो वे थे ही, कुशकी स्मरण करके उन्होंने तुरंत ही उसे काट डाला। बाणके छातीको लक्ष्य बनाकर उनसे युद्ध करनेके लिये गये। कटनेसे कुशका क्रोध और भी भड़क उठा तथा उन्होंने निकट जाकर उन्होंने कुशकी छातीपर वह शालवृक्ष दे धनुषपर दूसरा बाण चढ़ाया। उस बाणके द्वारा वे मारा । उसकी चोट खाकर वीर कुशने संहारास्त्र उठाया। शत्रुधको छाती छेद डालनेका विचार कर हो रहे थे कि उनका छोड़ा हुआ संहारास्त्र दुर्जय (अमोघ) था। उसे शत्रुघ्नने उसको भी काट गिराया। तब तो कुशको और देखकर हनुमानजी मन-ही-मन भक्तोंका विघ्न नष्ट भी क्रोध हुआ। अब उन्होंने अपनी माताके चरणोंका करनेवाले श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करने लगे। इतनेहीमें स्मरण करके धनुषपर तीसरा उत्तम बाण रखा। शत्रुनने उनकी छातीपर उस अस्त्रकी करारी चोट पड़ी। वह बड़ी उसको भी शीघ्र ही काट डालनेके विचारसे बाण हाथमें व्यथा पहुँचानेवाला अस्त्र था। उसके लगते ही लिया; किन्तु उसे छोड़नेके पहले ही वे कुशके बाणसे हनुमान्जीको मूर्छ आ गयी। तत्पश्चात् उस रणक्षेत्रमें घायल होकर पृथ्वीपर गिर पड़े। शत्रुघ्नके गिरनेपर सेनामें कुशके चलाये हुए हजारों बाणोंकी मार खाकर सारी बड़ा भारी हाहाकार मचा। उस समय अपनी भुजाओंके सेनाके पाँव उखड़ गये। समूची चतुरङ्गिणी सेना बलपर गर्व रखनेवाले वीरवर कुशकी विजय हुई। भाग चली। शेषजी कहते हैं-मुने ! राजाओंमें श्रेष्ठ सुरथने उस समय वानरराज सुग्रीव उस विशाल वाहिनीके जब शत्रुघ्रको गिरा देखा तो वे अत्यन्त अद्भुत मणिमय संरक्षक हुए। वे अनेकों वृक्ष उखाड़कर उद्धट वीर रथपर बैठकर युद्धके लिये गये। वे महान् वीरोंके कुशकी ओर दौड़े। परन्तु कुशने हँसते-हँसते खेलमे ही शिरोमणि थे। कुशके पास पहुँचकर उन्होंने अनेकों बाण वे सारे वृक्ष काट गिराये। तब सुग्रीवने एक भयंकर छोड़े और समरभूमिमें कुशको व्यथित कर दिया। तब पर्वत उठाकर कुशके मस्तकको उसका निशाना बनाया। कुशने भी दस वाण मारकर सुरथको रथहीन कर दिया उस पर्वतको आते देख कुशने शीघ्र ही अनेकों बाणोंका और प्रत्यञ्चा चढ़ाये हुए उनके सुदृढ़ धनुषको भी प्रहार करके उसे चूर्ण कर डाला। वह पर्वत महारुद्रके वेगपूर्वक काट डाला ! जब एक किसी दिव्य अस्त्रका शरीरमें लगाने योग्य भस्म-सा बन गया । बालकका यह प्रयोग करता, तो दूसरा उसके बदलेमें संहारास्त्रका महान् पराक्रम देखकर सुग्रीवको बड़ा अमर्ष हुआ और उपयोग करता था और जब दूसरा किसी अस्त्रको फेंकता उन्होंने कुशको मारनेके लिये रोषपूर्वक एक वृक्ष हाथमें तो पहला भी वैसा ही अस्त्र चलाकर तुरंत उसका बदला लिया। इतनेहीमें लवके बड़े भाई वीरवर कुशने चुकाता था। इस प्रकार उन दोनोंमें घोर घमासान युद्ध वारुणास्त्रका प्रयोग किया और सुग्रीवको वरुण-पाशसे हुआ, जो वीरोंके रोंगटे खड़े कर देनेवाला था। कुशने दृढतापूर्वक बाँध लिया। बलशाली कुशके द्वारा कोमल सोचा, अब मुझे क्या करना चाहिये? कर्तव्यका निश्चय पाशोंसे बाँधे जानेपर सुग्रीव रणभूमिमें गिर पड़े। करके उन्होंने एक तीक्ष्ण एवं भयङ्कर सायक हाथमें सुग्रीवको गिरा देख सभी योद्धा इधर-उधर भाग गये। लिया। छूटते ही वह कालानिके समान प्रज्वलित हो महावीशिरोमणि कुशने विजय पायी । इसी समय लवने उठा। उसे आते देख सुरथने ज्यों ही काटनेका विचार भी पुष्कल, अङ्गद, प्रतापाय, वीरमणि तथा अन्य
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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