SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . अयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण लवके ऊपर पड़ी, जिन्हें शत्रुओंने मूर्छित करके गिराया तुम अपने भाई लवके ही समान जान पड़ते हो। तुम्हारा था। [वे रथपर बँधे पड़े थे और उनकी मूर्छा दूर हो बल भी महान् है । बताओ तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारी चुकी थी] अपने महाबली प्राता कुशको आया देख माता कहाँ है ? और पिता कौन हैं?' लव युद्धभूमिमें चमक उठे; मानो वायुका सहयोग पाकर कुशने कहा-राजन् ! पातिव्रत्य धर्मका पालन अग्नि प्रज्वलित हो उठी हो । वे रथसे अपनेको छुड़ाकर करनेवाली केवल माता सीताने हमें जन्म दिया है। हम युद्धके लिये निकल पड़े। फिर तो कुशने रणभूमिमें खड़े दोनों भाई महर्षि वाल्मीकिके चरणोंका पूजन करते हुए हुए समस्त वीरोंको पूर्व दिशाकी ओरसे मारना आरम्भ इस वनमें रहते हैं और माताकी सेवा किया करते हैं। किया और लवने कोपमें भरकर सबको पश्चिम ओरसे हम दोनोंने सब प्रकारकी विद्याओंमें प्रवीणता प्राप्त की पीटना शुरू किया। एक ओर कुशके बाणोंसे व्यथित है। मेरा नाम कुश है और इसका नाम लव । अब तुम और दूसरी ओर लवके सायकोंसे पीड़ित हो सेनाके अपना परिचय दो, कौन हो? युद्धकी श्लाघा रखनेवाले समस्त योद्धा उत्ताल तरङ्गोंसे युक्त समुद्रकी भंवरके वीर जान पड़ते हो। यह सुन्दर अश्व तुमने किसलिये समान क्षुब्ध हो गये। सारी सेना इधर-उधर भाग चलो। छोड़ रखा है? भूपाल ! यदि वास्तवमें वीर हो तो मेरे साथ युद्ध करो। मैं अभी इस युद्धके मुहानेपर तुम्हारा वध कर डालूँगा। शत्रुघको जब यह मालूम हुआ कि यह श्रीरामचन्द्रजीके वीर्यसे उत्पन्न सौताका पुत्र है, तो उनके चित्तमें बड़ा विस्मय हुआ [किन्तु उस बालकने उन्हें युद्धके लिये ललकारा था; इसलिये] उन्होंने क्रोधमें भरकर धनुष उठा लिया। उन्हें धनुष लेते देख कुशको भी क्रोध हो आया और उसने अपने सुदृढ़ एवं उत्तम धनुषको खींचा। फिर तो कुश और शत्रुनके धनुषसे लाखों बाण छूटने लगे। उनसे वहाँका सारा प्रदेश व्याप्त हो गया। यह एक अद्भुत बात थी। उस समय उट वोर कुशने शत्रुघ्नपर नारायणास्त्रका प्रयोग किया; किन्तु वह अस्त्र उन्हें पीड़ा देनेमें समर्थ न हो सका। यह देख कुशके क्रोधकी सीमा न रही। वे महान् बल और पराक्रमसे सम्पन्न राजा शत्रुघ्रसे बोले-'राजन् ! मैं Pint-. जानता हूँ, तुम संग्राममें जीतनेवाले महान् वीर हो; सबके ऊपर आतङ्क छा रहा था। कोई भी बलवान् क्योंकि मेरे इस भयङ्कर अस्त्र-नारायणास्त्रने भी तुम्हें रणभूमिमें कहीं भी खड़ा होकर युद्ध करना नहीं तनिक बाधा नहीं पहुँचायी; तथापि आज इसी समय मैं चाहता था। अपने तीन बाणोंसे तुम्हें गिरा दैगा। यदि ऐसा न करूँ - इसी समय शत्रुओंको ताप देनेवाले राजा शत्रुघ्न तो मेरी प्रतिज्ञा सुनो, जो करोड़ों पुण्योंसे भी दुर्लभ लवके समान ही प्रतीत होनेवाले वीरवर कुशसे युद्ध मनुष्य-शरीरको पाकर मोहवश उसका आदर नहीं करता करनेके लिये आगे बढ़े। समीप पहुँचकर उन्होंने [भगवद्भजन आदिके द्वारा उसको सफल नहीं बनाता] पूछा-'महावीर ! तुम कौन हो? आकार-प्रकारसे तो उस पुरुषको लगनेवाला पातक मुझे भी लगे। अच्छा, T
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy