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________________ ५३६ • अर्थयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • [ संक्षिप्त पद्मपुराण लवने कहा- भैया ! आपकी कृपासे मैं युद्धरूपी समुद्रके पार हुआ। अब हमलोग इस रणकी स्मृतिके लिये कोई सुन्दर चिह्न तलाश करने चलें। ऐसा कहकर लव अपने भाई कुशके साथ पहले राजा शत्रुघ्रके निकट गये। वहाँ कुशने उनकी सुवर्णमण्डित मनोहर मुकुटमणि ले ली। फिर वीरवर लवने पुष्कलका सुन्दर किरीट उतार लिया। इसके बाद दोनों भाइयोंने उनके बहुमूल्य भुजबंद तथा हथियारोंको भी हथिया लिया। तदनन्तर हनुमान् और सुग्रीवके पास जाकर उन दोनोंको बाँधा। फिर लवने अपने भाईसे कहा- 'भैया! मैं इन दोनोंको अपने आश्रममें ले चलूँगा। वहाँ मुनियोंके बालक इनसे खेलेंगे और मेरा भी मनोरञ्जन होगा।' इस तरहकी बातें करते हुए उन दोनों महाबली वानरोंको पकड़कर वे आश्रमकी ओर चले और माताकी कुटीपर जा पहुँचे। अपने दोनों मनोहर बालकोंको आया देख माता जानकीको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने बड़े स्नेहके साथ उन्हें छातीसे लगाया। किन्तु जब उनके लाये हुए दोनों वानरोंपर उनकी दृष्टि पड़ी ********* राजाओंको जीतकर रणमें विजय पायी। फिर दोनों भाई तो उन्होंने हनुमान् और वानरराज सुग्रीवको सहसा बड़े हर्षमें भरकर एक-दूसरेसे मिले। पहचान लिया। अब वे उन्हें छोड़ देनेकी आज्ञा देती हुई यह श्रेष्ठ वचन बोलीं- 'पुत्रो ! ये दोनों वानर बड़े वीर और महाबलवान् हैं; इन्हें छोड़ दो। ये वीर हनुमानजी हैं, जिन्होंने रावणकी पुरी लङ्काको भस्म किया था तथा ये भी वानर और भालुओंके राजा सुग्रीव हैं। इन दोनोंको तुमने किसलिये पकड़ा है? अथवा क्यों इनके साथ अनादरपूर्ण बर्ताव किया है ?" पुत्रोंने कहा- 'माँ एक राम नामसे प्रसिद्ध बलवान् राजा हैं, जो महाराज दशरथके पुत्र हैं। उन्होंने एक सुन्दर घोड़ा छोड़ रखा है, जिसके ललाटपर सोनेका पत्र बँधा है। उसमें यह लिखा है कि 'जो सच्चे क्षत्रिय हों, वे इस घोड़ेको पकड़ें अन्यथा मेरे सामने मस्तक झुकावें।' उस राजाकी ढिठाई देखकर मैंने घोड़े को पकड़ लिया। सारी सेनाको हमलोगोंने युद्धमें मार गिराया है। यह राजा शत्रुघ्नका मुकुट है तथा यह दूसरे वीर महात्मा पुष्कलका किरीट है। सीताने कहा- पुत्रो ! तुम दोनोंने बड़ा अन्याय किया। श्रीरामचन्द्रजीका छोड़ा हुआ महान् अश्व तुमने
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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