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________________ ३९२ wwwwww • अर्थयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • ओर न देखे । उच्छिष्ट अवस्थामें या कपड़ेसे अपने सारे बदनको ढककर दूसरेसे बात न करे। क्रोधमें भरे हुए गुरुके मुखपर दृष्टि न डाले। तेल और जलमें अपनी परछाई न देखे। भोजन समाप्त हो जानेपर जूठी पंक्तिकी ओर दृष्टिपात न करे। बन्धनसे खुले हुए और मतवाले हाथीकी ओर दृष्टि न डाले। पत्नीके साथ भोजन न करे। भोजन करती, छकती, जंभाई लेती और अपनी मौजसे आसनपर बैठी हुई भार्याकी ओर दृष्टिपात न करे। बुद्धिमान् पुरुष किसी शुभ या अशुभ वस्तुको न तो लाँघे और न उसपर पैर ही रखे। कभी क्रोधके अधीन नहीं होना चाहिये। राग और द्वेषका त्याग करना चाहिये तथा लोभ, दम्भ, अवज्ञा, दोषदर्शन, ज्ञाननिन्दा, ईर्ष्या, मद, शोक और मोह आदि दोषोंको छोड़ देना चाहिये। किसीको पीड़ा न दे। पुत्र और शिष्यको शिक्षाके लिये ताड़ना दे। नीच पुरुषोंकी सेवा न करे तथा कभी तृष्णामें मन न लगाये। दीनताको यलपूर्वक त्याग दे विद्वान् पुरुष किसी विशिष्ट व्यक्तिका अनादर न करे। I नखसे धरती न कुरेदे । गौको जबर्दस्ती न बिठाये। साथ-साथ यात्रा करनेवालेको कहीं ठहरने या भोजन करनेके समय छोड़ न दे। नग्न होकर जलमें प्रवेश न करे। अग्निको न लाँगे। मस्तकपर लगानेसे बचे हुए तेलको शरीरमें न लगाये।* साँपों और हथियारोंसे खिलवाड़ न करें। अपनी इन्द्रियोंका स्पर्श न करें। रोमावलियों तथा गुप्त अङ्गोको भी न छूए अशिष्ट मनुष्यके साथ यात्रा न करे। हाथ, पैर, वाणी, नेत्र, शिश्र, उदर तथा कान आदिको चञ्चल न होने दे। अपने शरीर और नत्र आदिसे बाजेका काम न ले। अञ्जलिसे जलन पीये। पानीपर कभी पैर या हाथसे आघात न करे। ईंटें मारकर कभी फल या मूल न तोड़े। म्लेच्छोंकी भाषा न सीखे। पैरसे आसन न खींचे। बुद्धिमान् पुरुष अकारण नख तोड़ना, ताल ठोंकना, धरतीपर रेखा खींचना या अङ्गको मसलना आदि व्यर्थका कार्य न करे। खाद्य [ संक्षिप्त पद्मपुराण ******** व्यर्थकी चेष्टा न करे । 1 I पदार्थको गोदमें लेकर न खाय नाच-गान न करे। बाजे न बजाये। दोनों हाथ सटाकर अपना सिर न खुजलाये। जुआ न खेले। दौड़ते हुए न चले पानीमें पेशाब या पाखाना न करे। जूठे मुँह बैठना या लेटना निषिद्ध है। नग्न होकर स्नान न करे। चलते हुए न पढ़े। दाँतोंसे नख और रोएँ न काटे सोये हुएको न जगाये। सबेरेकी धूपका सेवन न करे। चिताके धुएँसे बचकर रहे। सूने घरमें न सोये। अकारण न थूके । भुजाओंसे तैरकर नदी पार न करे। पैरसे कभी पैर न धोये पैरोंको आगमें न तपाये। काँसीके बर्तनमें पैर न धुलाये। देवता, ब्राह्मण, गौ, वायु, अग्नि, राजा, सूर्य तथा चन्द्रमाकी ओर पाँव न पसारे अशुद्ध अवस्थामें शयन, यात्रा, स्वाध्याय, स्नान, भोजन तथा बाहर प्रस्थान न करे। दोनों संध्याओं तथा मध्याह्नके समय शयन, क्षौरकर्म, स्नान, उबटन, भोजन तथा यात्रा न करे। ब्राह्मण जूठे मुँह गौ, ब्राह्मण तथा अग्रिका स्पर्श न करे । उन्हें पैरसे कभी न छेड़े तथा देवताकी प्रतिमाका भी जूठे मुँह स्पर्श न करे । अशुद्धावस्थामें अग्निहोत्र तथा देवता और ऋषियोंका कीर्तन न करे। अगाध जलमें न घुसे तथा अकारण न दौड़े। बायें हाथसे जल उठाकर या पानीमें मुँह लगाकर न पिये। आचमन किये बिना जलमें न उतरे। पानीमें वीर्य न छोड़े। अपवित्र तथा बिना लिपी हुई भूमि, रक्त तथा विषको लाँघकर न चले। रजस्वला स्त्रीके साथ अथवा जलमें मैथुन न करे। देवालय या श्मशानभूमिमें स्थित वृक्षको न काटे। जलमें न थूके। हड्डी, राख, ठीकरे, बाल, काटे, भूसी, कोयले तथा कंडोंपर कभी पैर न रखे। बुद्धिमान् पुरुष न तो अग्निको लाँघे और न कभी उसे नीचे रखे। अग्निकी ओर पैर न करे तथा मुँहसे उसे कभी न फूँके । पेड़पर न चढ़े। अपवित्रावस्थामें किसीकी ओर दृष्टिपात न करे। आगमें आग न डाले तथा उसे पानी डालकर न बुझाये। अपने किसी सुहकी * नावगाहेदपो नग्नो वहिं नातिव्रजेत्तथा । शिरोऽभ्यङ्गावशिष्टेन तैलेनाङ्गे न लेपयेत् ॥ (५५ । ५६-५७) न चाग्निं लङ्घयेद्धीमान् नोपदध्यादधः कचित्। न चैनं पादतः कुर्यान्मुखेन न धमेद् बुधः ॥ ५५ ॥ ७७)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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