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________________ • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण उत्पन्न हुए–प्रह्लाद, अनुहाद, संहाद और हाद। कल्पवीर्य तथा दनुवंशविवर्धन । संहाद दैत्यके वंशमें प्रहादके चार पुत्र हुए-आयुष्मान, शिबि, वाष्कलि निवातकवचोंका जन्म हुआ। वे गन्धर्व, नाग, राक्षस एवं और चौथा विरोचन । विरोचनको बलि नामक पुत्रकी सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये अवध्य थे। परन्तु वीरवर प्राप्ति हुई। बलिके सौ पुत्र हुए। उनमें बाण जेठा था। अर्जुनने संग्राम-भूमिमें उन्हें भी बलपूर्वक मार डाला। गुणोंमें भी वह सबसे बढ़ा-चढ़ा था। बाणके एक हजार ताम्राने कश्यपजीके वीर्यसे छ: कन्याओंको जन्म दिया, बाँहें थीं तथा वह सब प्रकारके अस्त्र चलानेकी कलामें जिनके नाम हैं-शुकी, श्येनी, भासी, सुगधी, गृधिका भी पूरा प्रवीण था। त्रिशूलधारी भगवान् शङ्कर उसकी और शुचि । शुकीने शुक और उल्लू नामवाले पक्षियोंको तपस्यासे सन्तुष्ट होकर उसके नगरमें निवास करते थे। उत्पन्न किया। श्येनीने श्येनों (बाजों) को तथा भासीने बाणासुरको 'महाकाल की पदवी तथा साक्षात् कुरर नामक पक्षियोंको जन्म दिया। गृध्रीसे गृध्र और पिनाकपाणि भगवान् शिवकी समानता प्राप्त हुई-वह सुगृधीसे कबूतर उत्पन्न हुए तथा शुचिने हंस, सारस, महादेवजीका सहचर हुआ। हिरण्याक्षके उलूक, कारण्ड एवं नव नामके पक्षियोंको जन्म दिया। यह शकुनि, भूतसन्तापन और महाभीम-ये चार पुत्र थे। ताम्राके वंशका वर्णन हुआ। अब विनताकी सन्तानोंका इनसे सत्ताईस करोड़ पुत्र-पौत्रोंका विस्तार हुआ। वे सभी वर्णन सुनो। पक्षियोंमें श्रेष्ठ गरुड और अरुण विनताके महाबली, अनेक रूपधारी तथा अत्यन्त तेजस्वी थे। पुत्र है तथा उनके एक सौदामनी नामकी कन्या भी है, - दनुने कश्यपजीसे सौ पुत्र प्राप्त किये। वे सभी वरदान जो यह आकाशमें चमकती दिखायी देती है। अरुणके पाकर उन्मत्त थे। उनमें सबसे ज्येष्ठ और अधिक दो पुत्र हुए-सम्पाति और जटायु । सम्पातिके पुत्रोंका बलवान् विप्रचित्ति था । दनुके शेष पुत्रोंके नाम स्वर्भानु नाम बभ्रु और शीघ्रग हैं। इनमें शीघ्रग विख्यात है। और वृषपर्वा आदि थे। स्वर्भानुसे सुप्रभा और पुलोमा जटायुके भी दो पुत्र हुए-कर्णिकार और शतगामी । वे नामक दानवसे शची नामकी कन्या हुई। मयके तीन दोनों ही प्रसिद्ध थे। इन पक्षियोंके असंख्य पुत्रकन्याएँ हुई-उपदानवी, मन्दोदरी और कुहू । वृषपर्वाक पौत्र हुए। दो कन्याएँ थीं-सुन्दरी शर्मिष्ठा और चन्द्रा । वैश्वानरके सुरसाके गर्भसे एक हजार सोकी उत्पत्ति हुई तथा भी दो पुत्रियाँ थीं-पुलोमा और कालका । ये दोनों ही उत्तम व्रतका पालन करनेवाली कद्रूने हजार मस्तकवाले बड़ी शक्तिशालिनी तथा अधिक सन्तानोंकी जननी हुई। एक सहस्र नागोंको पुत्रके रूपमें प्राप्त किया। उनमें इन दोनोंसे साठ हजार दानवोंकी उत्पत्ति हुई। पुलोमाके छब्बीस नाग प्रधान एवं विख्यात हैं-शेष, वासुकि, पुत्र पौलोम और कालकाके कालखा (या कालकेय) कोंटक, शङ्ख, ऐरावत, कम्बल, धनञ्जय, महानील, कहलाये। ब्रह्माजीसे वरदान पाकर ये मनुष्योंके लिये पद्य, अश्वतर, तक्षक, एलापत्र, महापद्म, धृतराष्ट्र, अवध्य हो गये थे और हिरण्यपुरमें निवास करते थे; बलाहक, शङ्खपाल, महाशक, पुष्पदन्त, सुभावन, फिर भी ये अर्जुनके हाथसे मारे गये।* शङ्खरोमा, नहुष, रमण, पाणिनि, कपिल, दुर्मुख तथा विप्रचित्तिने सिंहिकाके गर्भसे एक भयङ्कर पुत्रको पतञ्जलिमुख । इन सबके पुत्र-पौत्रोंकी संख्याका अन्त जन्म दिया, जो सैहिकेय (राहु) के नामसे प्रसिद्ध था। नहीं है। इनमेंसे अधिकांश नाग पूर्वकालमें राजा हिरण्यकशिपुकी बहिन सिंहिकाके कुल तेरह पुत्र थे, जनमेजयके यज्ञ-मण्डपमें जला दिये गये। क्रोधवशाने जिनके नाम ये हैं-कंस, शङ्ख, नल, वातापि, इल्वल, अपने ही नामके क्रोधवशसंज्ञक राक्षससमूहको उत्पन्न नमुचि, खसृम, अञ्जन, नरक, कालनाभ, परमाणु, किया। उनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ें थीं। उनमेंसे दस लाख * यहाँ तथा आगेके प्रसङ्गों में भी पुलस्त्यजी भविष्यकी बात भूतकालकी भाँति कह रहे है-यही समझना चाहिये।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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