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________________ सृष्टिखण्ड] • देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसोकी उत्पत्तिका वर्णन • देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसोंकी उत्पत्तिका वर्णन भीष्मजीने कहा-गुरुदेव ! देवताओं, दानवों, शिशिर थे। अनलके कई पुत्र हुए, जो प्रायः अग्निके गन्धों, नागों और राक्षसोंकी उत्पत्तिका आप विस्तारके समान गुणवाले थे। अग्निपुत्र कुमारका जन्म सरकंडोंमें साथ वर्णन कीजिये। हुआ। उनके शाख, उपशाख और नैगमेय-ये तीन पुत्र पुलस्त्यजी बोले-कुरुनन्दन ! कहते हैं पहलेके हुए। कृत्तिकाओंकी सन्तान होनेके कारण कुमारको प्रजा-वर्गकी सृष्टि संकल्पसे, दर्शनसे तथा स्पर्श करनेसे कार्तिकेय भी कहते हैं। प्रत्यूषके पुत्र देवल नामके मुनि होती थी; किन्तु प्रचेताओंके पुत्र दक्ष प्रजापतिके बाद हुए। प्रभाससे प्रजापति विश्वकर्माका जन्म हुआ, जो मैथुनसे प्रजाकी उत्पत्ति होने लगी। दक्षने आदिमें जिस शिल्पकलाके ज्ञाता है। वे महल, घर, उद्यान, प्रतिमा, प्रकार प्रजाकी सृष्टि की, उसका वर्णन सुनो। जब वे आभूषण, तालाब, उपवन और कूप आदिका निर्माण [पहलेके नियमानुसार सङ्कल्प आदिसे] देवता, ऋषि करनेवाले हैं। देवताओंके कारीगर वे ही हैं। और नागोंकी सृष्टि करने लगे किन्तु प्रजाकी वृद्धि नहीं अजैकपाद्, अहिर्बुध्य, विरूपाक्ष, रैवत, हर, हुई, तब उन्होंने मैथुनके द्वारा अपनी पत्नी वीरिणीके बहुरूप, त्र्यम्बक, सावित्र, जयन्त, पिनाकी और गर्भसे साठ कन्याओंको जन्म दिया। उनमेंसे उन्होंने दस अपराजित-ये ग्यारह रुद्र कहे गये हैं; ये गणोंके स्वामी धर्मको, तेरह कश्यपको, सत्ताईस चन्द्रमाको, चार हैं। इनके मानस सङ्कल्पसे उत्पन्न चौरासी करोड़ पुत्र हैं, अरिष्टनेमिको, दो भृगुपुत्रको, दो बुद्धिमान् कृशाश्वको जो रुद्रगण कहलाते हैं। वे श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये रहते तथा दो महर्षि अङ्गिराको ब्याह दीं। वे सब देवताओंकी हैं। उन सबको अविनाशी माना गया है। जो गणेश्वर जननी हुई। उनके वंश-विस्तारका आरम्भसे ही वर्णन सम्पूर्ण दिशाओंमें रहकर सबकी रक्षा करते हैं, वे सब करता हूँ, सुनो। अरुन्धती, वसु, जामी, लंबा, भानु, सुरभिके गर्भसे उत्पन्न उन्हींके पुत्र-पौत्रादि है। अब मैं मरुत्वती, सङ्कल्पा, मुहर्ता, साध्या और विश्वा-ये दस कश्यपजीकी खियोंसे उत्पन्न पुत्र-पौत्रोंका वर्णन करूँगा। धर्मकी पत्नियाँ बतायी गयी हैं। इनके पुत्रोंके नाम सुनो। अदिति, दिति, दनु, अरिष्टा, सुरसा, सुरभि, विनता, विश्वाके गर्भसे विश्वेदेव हुए। साध्याने साध्य नामक ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रू, खसा और मुनि-ये देवताओंको जन्म दिया। मरुत्वतीसे मरुत्वान् नामक कश्यपजीकी पत्नियोंके नाम हैं। इनके पुत्रोंका वर्णन देवताओंकी उत्पत्ति हुई। वसुके पुत्र आठ वसु सुनो। चाक्षुष मन्वन्तरमें जो तुषित नामसे प्रसिद्ध देवता कहलाये। भानुसे भानु और मुहूर्तासे मुहूर्ताभिमानी थे, वे ही वैवस्वत मन्वन्तरमें बारह आदित्य हुए। उनके देवता उत्पन्न हुए। लंबासे घोष, जामीसे नागवीथी नाम है-इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा, मित्र, वरुण, अर्यमा, नामकी कन्या तथा अरुन्धतीके गर्भसे पृथ्वीपर होनेवाले विवस्वान्, सविता, पूषा, अंशुमान् और विष्णु। ये समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। सङ्कल्पासे सङ्कल्पोका जन्म सहस्रों किरणोंसे सुशोभित बारह आदित्य माने गये हैं। हुआ। अब वसुकी सृष्टिका वर्णन सुनो। जो देवगण इन श्रेष्ठ पुत्रोंको देवी अदितिने मरीचिनन्दन कश्यपके अत्यन्त प्रकाशमान और सम्पूर्ण दिशाओंमें व्यापक हैं, अंशसे उत्पन्न किया था। कृशाश्व नामक ऋषिसे जो पुत्र वे वसु कहलाते हैं उनके नाम सुनो। आप, ध्रुव, सोम, हुए, उन्हें देव-प्रहरण कहते हैं। ये देवगण प्रत्येक घर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास-ये आठ वसु मन्वन्तर और प्रत्येक कल्पमें उत्पन्न एवं विलीन होते हैं। 'आप' के चार पुत्र हैं-शान्त, वैतण्ड, साम्ब और रहते हैं। मुनिबधु। ये सब यज्ञरक्षाके अधिकारी है। ध्रुवके पुत्र भीष्म ! हमारे सुननेमें आया है कि दितिने काल और सोमके पुत्र वर्चा हुए। धरके दो पुत्र हुए- कश्यपजीसे दो पुत्र प्राप्त किये, जिनके नाम थेद्रविण और हव्यवाह । अनिलके पुत्र प्राण, रमण और हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष । हिरण्यकशिपुसे चार पुत्र
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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