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________________ कुछ प्रारम्भिक भक्त गुप्त वासनाओ पर विजय पा सकता है, यह प्रदर्शित करता है कि यह वैराग्य है जिसके लिए वह प्रयत्न करने की आवश्यकता अनुभव करते हैं । श्रीभगवान् उनसे यह कह रहे थे कि विचार या आत्म-अन्वेपण वैराग्य का सबसे छोटा मार्ग है। आवेश और आसक्ति मन मे होते हैं, इसलिए जब मन पर नियन्त्रण कर लिया जाता है, तब वह परास्त हो जाते है। यही वैराग्य है। मन का लोप हो जाना चाहिए और मानसिक क्रियाएँ नष्ट हो जानी चाहिए, इस वक्तव्य का कई आलोचको ने गलत अर्थ लगाया है, जिससे प्रगाढ निद्रा के समान शून्य अवस्था का बोध होता है। स्वभावत इस प्रकार के आलोचको को यह व्याख्या करने में कठिनाई होती है कि इस प्रकार की अवस्था को परमानन्द की सजा क्यो दी जाय । जब बौद्ध लोग निर्वाण की चर्चा करते हैं, जिसका अर्थ भी विलकुल वही है तब उनके सामने वही कठिनाई प्रस्तुत होती। वस्तुत विचार एक अप्रत्यक्ष ज्ञान है जो प्रत्यक्ष ज्ञान या आत्म-ज्ञान के माग मे वाषक है। आत्म-साक्षात्कार करने वाला व्यक्ति विचार की शक्ति या अन्य शक्ति खो नहीं देता। उसका मन जैसा कि पहले बताया गया है, मध्याह्न के पूर्ण चन्द्रमा की तरह है, जो प्रकाशमान है पर यह आवश्यक नहीं कि उसे देखा जा सके। बाद मे इन उत्तरो को विस्तृत रूप दिया गया और 'हू एम आई' के नाम से पुस्तक रूप में क्रमबद्ध किया गया, सम्भवत यह श्रीभगवान् की सर्वाधिक प्रशसित गद्य रचना है। सन् १९१० तक शिवप्रकाशम् पिल्लई को सरकारी नौकरी कष्टसाध्य तथा साधना के माग मे बाधक प्रतीत होने लगी थी। वह इतने साधन सपन्न थे कि बिना आजीविका अजित किये गृहस्थ का जीवन व्यतीत कर सकते थे इसलिए उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। तीन वष बाद उन्हें वास्तविक निर्णय करना था। क्या उनके त्यागपत्र का अभिप्राय यह था कि वह सासारिक जीवन का परित्याग कर रहे हैं या कि वह केवल कठिन मार्ग का परित्याग कर रहे हैं और सुखद माग को अपना रहे हैं। उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। उन्हे अब यह निणय करना था कि यह पुनर्विवाह करें या साधु वन जायें। वह पूरे मधेड नहीं कहे जा सकते थे और एक लड़की के प्रति उनकी अत्यधिक आसक्ति भी । अगर उन्हें पुनर्विवाह करना और नये सिरे से गृहस्पी बसानी पी, तब यह प्रश्न भी पैदा होता था कि पैसा कहाँ से आये ? __पहले इस प्रकार के विपयों के सम्बन्ध में श्रीभगवान से प्रश्न करने में उन्हे सकोच हुआ। शायद उन्हे यह मामास हो गया कि वह क्या उत्तर देंगे ? इसलिए उन्होंने दूसरे तरीके से उत्तर प्राप्त करने का प्रयास किया । उन्होंने कागन के एक टुकडे पर चार प्रश्न लिखे
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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