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________________ ८४ रमण महर्षि भगवान् की इच्छा का परिणाम नही है ? अगर ऐसी बात हो तो भगवान की ऐसी इच्छा क्यो है ? भगवान् भगवान् का कोई प्रयोजन नहीं है। वह कर्म-वधन मे नही है। ससार के क्रिया-कलाप उसे प्रभावित नहीं कर सकते । सूय का उदाहरण लें । सूर्य विना किसी इच्छा, प्रयोजन या प्रयास के उदय होता है, परन्तु जैसे ही यह उदय होता है वैसे ही पृथ्वी पर अनेक क्रिया-कलाप होने लगते हैं ? सूय की किरणो के प्रकाश में रखा हुआ ताल अपने केन्द्र मे अग्नि का प्रादुर्भाव करने लगता है, कमल-कलिका खिल उठती है, पानी वाष्प वनकर उडने लगता है और प्रत्येक जीवित प्राणी क्रिया-कलाप प्रारम्भ कर देता है, इसे जारी रखता है और अतत इसे वन्द कर देता है। परन्तु सूर्य पर किसी गतिविधि का प्रभाव नहीं पडता, क्योंकि यह केवल अपनी प्रकृति के अनुसार, निश्चित नियमो के अनुरूप और बिना किसी प्रयोजन के काय करता है और केवल साक्षी होता है। भगवान् की भी यही दशा है। या आकाश का उदाहरण लें । पृथ्वी, जल, अग्नि, और वायु सब का अस्तित्व आकाश मे है और इनके परिवर्तित रूप भी इसमे विराजमान हैं परन्तु इनमे से कोई भी आकाश को प्रभावित नहीं करता । भगवान् की भी ऐसी ही वात है। सृष्टि की उत्पत्ति, घारण, विनाश, निवर्त्तन और मुक्ति के कार्यों मे, जिनके आधीन मसार के प्राणी हैं, भगवान् की कोई इच्छा या प्रयोजन नहीं है । प्राणियो को उनके कर्मों का फल भगवान् के नियमो के अनुसार मिलता है, इसलिए दायित्व उनका है, भगवान् का नही । भगवान् किन्ही क्रियाओ से बँधा हुया नही है। श्रीभगवान् की इस उक्ति को कि द्रष्टा का वास्तविक स्वरूप तभी प्रकट होता है जव दृश्य वस्तुएँ लुप्त हो जाती हैं, हमे शब्दश इस अर्थ मे नही लेना चाहिए कि उसे भौतिक ससार का ज्ञान ही नही रहता । यह तो निर्विकल्प समाधि की अवस्था है, इसका तात्पय तो यह है कि वह वस्तुएं वास्तविक प्रतीत न होकर केवल आत्मा के विविध रूप प्रतीत होती हैं। यह सर्प और रज्जु के उदाहरण से स्पप्ट हो जायेगा। यह एक परम्परागत उदाहरण है, जिसका प्रयोग श्रीशकर ने भी किया था। एक व्यक्ति को सन्ध्या समय कुण्डलीकृत रज्जु दिखायी देती है, वह इसे गलती मे सौप समझ बैठता है और इसीलिए भयभीत हो जाता है। जब सवेरा होता है, वह देखता है कि यह तो केवल रज्जु है और उसका भय निराधार था । सत्ता की वास्तविक्ता रज्ज है, उसे भयभीत करने वाला मर्प का भ्रम वाह्य ममार है। विचागे को पैदा होते ही कुचल देना वैराग्य है, इम वक्तव्य की भी व्यास्या अपेक्षित है। वैगग्य का अर्थ है निमगता, अनामक्ति, ममता। शिवप्रकाशम् पिल्लई का यह प्रश्न कि कब मानव अपनी महज वृत्तिया और
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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