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________________ (२) रमण महर्षि (१) ससार के सब कष्टो और चिन्ताओ से मुक्ति पाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? क्या मेरा उस लडकी से, जिसके बारे मे मैं सोच रहा हूँ, विवाह होगा ? (३) अगर नही, तो क्यो ? (४) अगर मेरा विवाह होना है तो आवश्यक धन कहाँ से आएगा? इस कागज के टुकडे को लेकर, वह विघ्नेश्वर के मन्दिर की ओर चल पडे । वह वचपन से ही विघ्नेश्वर की पूजा किया करते थे । उन्होने मूर्ति के सम्मुख कागज रख दिया और सारी रात जागकर यह प्रार्थना करते रहे कि कागज पर लिखित उत्तर आ जाय या उन्हें कोई सकेत मिल जाय या आभास हो जाय । __कुछ भी नही हुआ और अव उनके पास स्वामी के समीप जाने के और कोई चारा नही था । वह विरूपाक्ष कन्दरा की ओर गये परन्तु स्वामी के सम्मुख प्रश्न रखते हुए उन्हे अब भी सकोच हो रहा था । दिन-प्रति-दिन वह इसे स्थगित करते गये । यद्यपि श्रीभगवान् कभी भी किसी को गृह-परित्याग के लिए प्रोत्साहित नही करते थे, तथापि इसका यह अभिप्राय नहीं कि जिस व्यक्ति को विधि ने गृह-वधनो से मुक्त कर दिया हो उसे वह पुन गृह-वधनो मे पहने के लिए प्रोत्साहित करते । शिवप्रकाशम् पिल्लई को धीरे-धीरे यह अनुभव होने लगा कि स्वामी की शान्ति और पवित्रता, स्त्रियो के प्रति पूर्ण उदासीनता और धन के प्रति निरपेक्षता से उन्हें उनके प्रश्नो का उत्तर मिल गया है। उनके जाने का दिन आ गया जोर अभी तक वह प्रश्न नही पूछ सके । उस दिन स्वामी के निकट अनेक लोग थे, इसलिए अगर वह प्रश्न पूछना भी चाहते तो उन्हें सबके सामने पूछने पडते । वह स्वामी की ओर एकटक दृष्टि लगाकर बैठ गये। उन्हें स्वामी के सिर के निकट एकाएक चौंघियाने वाला प्रकाश दिखाई दिया और उन्होंने उनके सिर मे एक स्वण आभामय वालक को निकलते हए तथा उसमे पुन प्रवेश करते हुए देवा । क्या यह जीवित जाग्रत उत्तर था कि सतति हाड माम को नहीं अपितु आत्मा की है। वह आनन्द-विभोर हो उठे। सदेह और अनिणय की उनकी लम्बी अवधि ममाप्त हो गयी, वह सिमकियां भग्ने लगे, उन्हे इससे पूण सात्वना मिली। यह श्रीभगवान् के जीवन की महान् असाधारणता का एक उदाहरण है। जय शिवप्रकाशम पिल्लई ने अन्य भक्तो को इस घटना के सम्बन्ध में बताया तब कुछ हमने लगे, कुछ को विश्वाम नहीं हुआ और कुछ को यह मन्देह होने लगा कि वह नशे मे हैं यद्यपि दगन और अमाधारण घटनाओं के बहुत मे
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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