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________________ माँ ६५ दूसरा ऐसा कौन है जो शरणागत की माता के समान रक्षा करे और उसे कम के बन्धन से मुक्त करे ? देखने मे तो ऐसा लगता था कि यह माता की रोग-मुक्ति की प्राथना है परन्तु वस्तुत यह उसे भ्रम के महान् रोग से मुक्ति दिलाने और जीवन के उन्माद से छुटकारा दिलाकर आत्मा के साथ एकरूप अनुभव कराने की प्राथना थी । कहने की आवश्यकता नही कि अलगम्माल ठीक हो गयी। वह मानमदुरा वापस आ गयी परन्तु इस प्राथना के बाद परिस्थितियो का चक्र इम प्रकार चला कि वह सासारिक जीवन से पुन आश्रम के जीवन में प्रविष्ट हो गयी । तिरुचुज हो का पारिवारिक घर कर्जा चुकाने तथा अन्य आवश्यक खच पूरे करने के लिए बेच दिया गया था। उसके बहनोई नेल्लियाप्पियर की मृत्यु हो गयी थी और वह परिवार को बहुत बुरी दशा मे छोड गये थे । सन् १९१५ मे उसके सबसे छोटे पुत्र नागसुन्दरम् की पत्नी की मृत्यु हो गयी थी । पीछे वह एक पुत्र छोड गयी थी, जिसे उसकी चाची अलामेलु ने गोद लिया था । अव इसकी शादी हो चुकी थी । अलगम्माल ने अनुभव किया कि अब इस वृद्धावस्था में उसका एकमात्र आश्रय स्थान अपने स्वामी पुत्र के पास ही था । सन् १६१६ के प्रारम्भ मे वह तिरुवनामलाई गयी । पहले वह कुछ दिनों के लिए अचम्माल के पास ठहरी । कुछ भक्त उसके श्रीभगवान् के माथ ठहरने के विरुद्ध थे । उन्हें भय था कि कही मौन विरोध के परिणामस्वरूप स्वामी वह स्थान छोडकर न चले जायें जैसे कि सन् १८६६ में वह घर छोडकर चले गये थे । पहले की और वर्तमान स्थिति मे बहुत अन्तर या क्योकि अव माँ ने गृह-परित्याग किया था, श्रीभगवान् ने नही, जो वहाँ ठहरे हुए थे । श्रीभगवान् की तेजस्विता इतनी प्रभावशालिनी थी कि उनके अनुग्रहपूर्ण व्यवहार के बावजूद, जब इस प्रकार का प्रश्न उठता था कि उनकी क्या इच्छा है, किसी को उनसे प्रत्यक्षत पूछने का साहस नही होता था । अगर कोई पूछता भी था तो वह बिना उत्तर दिये अविचल भाव से बैठे रहते थे क्योकि उनकी कोई इच्छाएँ नही थी । जब श्रीभगवान् की माँ उनके पास रहने के लिए आयी तो वह इसके तत्काल बाद विरूपाक्ष से स्कन्दाश्रम चले गये । यह स्थान कुछ ऊंचाई पर और विरूपाक्ष के ठीक ऊपर था । यह बहुत खुली कन्दरा थी और श्रीभगवान् के रहने के लिए बनायी गयी थी । वहाँ एक आर्द्र शिलाखण्ड को देखकर उन्होने यह अनुमान किया कि वहाँ कोई गुप्त स्रोत है। खुदाई करने और बारूद से जगह उठाने के पश्चात् जल का एक प्रवाह फूट पडा जो आश्रम तथा कन्दरा के सामने बनाये जाने वाले लघु उद्यान के लिए पर्याप्त था । माँ ने वहां
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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