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________________ भक्तजन १७३ था। एक सायकाल, जब भक्तजन रात होने पर अपने स्थानो पर चले गये तो बच्चे को एक सांप ने काट लिया। राजगोपाल ऐय्यर ने बच्चे को उठा लिया और वह सीधे दौडते हुए सभा-भवन की ओर गये। जिस समय वह वहा पहुंचे वच्चे का शरीर नीला पड़ चुका था और उसकी सांस जोर-जोर से चल रही थी । श्रीभगवान् ने बच्चे के मस्तक पर हाथ रखते हुए कहा, "रमण, तुम तो विलकुल ठीक हो।" और वह विलकुल ठीक हो गया। राजगोपाल ऐय्यर ने कुछ भक्तो को यह घटना बतायी, परन्तु इसके सम्वन्ध मे बहुत चर्चा नहीं हुई। भगवान् से वर मांगना और अपने सरक्षण तथा कल्याण के लिए उन पर निभर करना यद्यपि एक जैसी बातें मालूम देती है, तथा उनमे हमे भेद करना चाहिए। सरक्षण तथा कल्याण के लिए भगवान पर निभर रहने को वह निस्सन्देह स्वीकृति प्रदान करते थे। अगर कोई व्यक्ति अपने कल्याण का भार उन पर डाल देता था तो वह इसे स्वीकार कर लेते थे । गुरु के प्रति शिष्य की वृत्ति का वर्णन करते हुए उन्होंने अरुणाचलशिव मे लिखा, "क्या तूने मुझे अदर नहीं बुलाया ? मैं अन्दर आ चुका हूँ और मेरी रक्षा का भार अव तुझ पर है। एक वार एक भक्त की प्रार्थना पर उन्होने भगवद्गीता से ४२ श्लोक चुने और अपनी शिक्षा की अभिव्यक्ति के लिए उन्हे एक भिन्न क्रम मे रवा, उन श्लोको मे एक श्लोक का भाव इस प्रकार था, "मैं उन भक्तो की रक्षा और कल्याण सम्पादन करता हूँ, जो समस्त सृष्टि को एक रूप समझते हुए मेरा चिन्तन करते हैं और इस प्रकार सदा समरस स्थिति मे रहते हैं । कठिन परीक्षा और भक्त के विश्वास को कसौटी पर कसने वाली असुरक्षा की घडियो मे, जो भक्त भगवान् मे अपना पूर्ण विश्वास रखता है, भगवान् सदा उसकी रक्षा करते हैं।"
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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