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________________ सोलहवां अध्याय लिखित रचनाएँ श्रीभगवान् की लिखित रचनाएं बहुत थोडी हैं और ये भी प्राय भक्तो की विशिष्ट आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए लिखी गयी थी। देवराज मुदालियर ने अपनी डायरी मे लिखा है कि एक वार एक कवि महानुभाव आश्रम मे आये थे, उनके सम्बन्ध मे चर्चा करते हुए भगवान ने कहा था "यह सब केवल मन का कार्य है। जितना अधिक आप मन को गतिमान रखेंगे और जितनी अधिक सफलता आपको काव्य रचना मे मिलेगी, उतनी अधिक आपकी शान्ति कम होती जायेगी। अगर आपको शान्ति नहीं मिलती तो इस प्रकार की प्रवीणता प्राप्त करने का क्या लाभ ? परन्तु अगर आप ऐसे लोगो को यह बात कहे तो उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वह शान्त नहीं रह सकते। वह गीत-रचना जारी रखेंगे । मेरा मन पुस्तकें लिखने या कविता-रचना करने को नहीं करता। मैंने जितनी भी कविताएं रची हैं, वह किसी विशेष घटना के सम्बन्ध मे किसी न किसी की प्रार्थना पर रची गयी थी। फॉर्टी वसिज ऑन रिऐलिटी की भी, जिसकी इतनी टीकाएं और अनुवाद अब मिलते हैं, पुस्तक के रूप मे योजना नही बनायी गयी थी, अपितु उसमे विभिन्न समयो पर रचित कविताएं हैं और बाद मे मुरुगानार तथा अन्य भक्तो ने इसे पुस्तक का रूप दिया । जो कविताएं स्वत स्फूर्त रूप मे रची गयी और जिन्हे लिखने की मुझे किसी दूसरे ने प्रेग्णा नही दी वह इलेविन स्टेजाज टू श्री अरुणाचल और एट स्टेजाज टू श्री अरुणाचल हैं । इलेविन स्टेजाज के प्रारम्भिक शब्द एक प्रात काल मेरे मन मे आये और यद्यपि मैंने यह कहकर 'मुझे इन शब्दो का क्या करना है ?' उन्हे दवाने का प्रयत्ल किया, वह दवाये नही जा सके, और उन शब्दो से मैने एक गीत की रचना कर डाली और मारे शब्द विना किमी प्रयास के स्वत ही मेरी जवान पर आते गए। इमी प्रकार अगले दिन दूसरे पद की रचना हुई और इसके बाद प्रतिदिन एक पद की रचना होती गयी। केवल १०वां और ११वां पद उसी दिन बनाये गये ।"
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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