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________________ १६८ रमण महर्षि खुलकर बातें करते थे जिस प्रकार देवराज मुदालियर या टी० पी० रामचन्द्रया। श्री टी० पी० रामचन्द्रया के दादा तो युवक श्रीरमण को अपने घर मे एक त्योहार के अवसर पर जबरदस्ती भोजन कराने ले गये थे। तिरुवन्नामलाई मे यही एकमात्र ऐसा घर था जहां उन्होने भोजन किया था। डॉ० टी० एन० श्रीकृष्ण स्वामी ने जो अक्सर मद्रास से श्रीभगवान के दर्शनो के लिए आया करते थे, उनकी अनेक भाव-भगिमाओ मे सुन्दर चित्र खीचे हैं । श्रीभगवान् की एक महिला भक्त नागम्मा ने मद्रास स्थित एक बैंक के मैनेजर अपने भाई डी० एस० शास्त्री को तेलुगु मे कई पत्र लिखे थे । इन पत्रो मे जिनमे आश्रम की घटनाओ का अत्यन्त सजीव और मनोहारी चित्रण और श्रीभगवान की दिव्य उपस्थिति का प्रभावोत्पादक वर्णन है। फिर ऐसे भी भक्त थे जिन्होने श्रीभगवान् के माथ वार्तालाप करना बिलकुल आवश्यक नही समझा था। उन्होंने उनके साथ बहुत कम भापण किया। ऐसे भी गृहस्थ थे जो अवसर मिलने पर अपने नगर या देश से श्रीभगवान के दर्शन के लिए आते और ऐसे भी भक्त थे जो थोडे अरसे के लिए आश्रम मे आये और तब से उनके शिष्य बन गये, हालांकि भौतिक रूप से वह हमेशा उनके साथ नही रहे । कई ऐसे भी भक्त थे जिन्होने श्रीभगवान् को कभी नही देखा परन्तु उन्होने दूर से ही मौन दीक्षा प्राप्त की। श्रीभगवान् पहरावे या व्यवहार में किसी प्रकार की विचित्रता और होतिरेक के प्रदर्शन को निरुत्साहित करते थे । यह पहले ही बताया जा चुका है कि वह किस प्रकार दर्शनो और सिद्धियो के लिए इच्छा को निरुत्साहित करते थे। वह यह चाहते थे कि गृहस्थ लोग परिवार मे रहते हुए और अपना व्यावसायिक जीवन व्यतीत करते हुए साधना करें। वह भक्तो के वाह्य रूप मे विशेष परिवतनो के आकाक्षी नही थे क्योकि इस प्रकार के परिवतन ऊपरी ढांचा हैं, उनका कोई आधार नहीं है और वह वाद मे लुप्त हो जाते हैं । वस्तुत कभी-कभी ऐसा होता था कि कोई भक्त निराश हो जाता, उसे अपने में कोई सुधार दृष्टिगोचर न होता और वह यह शिकायत करता कि वह प्रगति नहीं कर रहा । इन हालातो मे भगवान् उसे मान्त्वना देते या व्यग्य से कहते, "तुम्ह कैसे पता कि तुम्हारी कोई प्रगति नहीं हो रही ?" और वह ममझाते हुए कहते कि गुरु को ही शिप्य की प्रगति का पता चलता है, शिप्य को नहीं, शिप्य को चाहिए कि वह धैर्यपूर्वक माधना पय पर आम्द रहे। यह बडा दुर्गम है परन्तु भगवान के प्रति शिप्यो के प्रेम और उनने मदय हास्य ने इसे सौन्दयमय बना दिया था। ____ मौन जैसे असाधारण माग पो वह मदा निरुत्साहित करते रे | Tम ग कम एन अवसर पर तो श्रीभगवान ने यह मवथा पाट कर दिया था।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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