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________________ भक्तजन १६७ सम्बन्ध मे आनन्दित और उत्तेजित होने के समान नहीं था। मैं इसका वणन नही कर सकती , इतना ही कह सकती हूँ कि मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ और भगवान् इतने भव्य और सुन्दर हैं।" ___ सात-वीय आदम ने लिखा, "जब मैं सभा-भवन मे बैठा हुआ था, मुझे प्रसन्नता का अनुभव नहीं हुआ, इसलिए मैंने प्राथना करना शुरू किया और मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। यह प्रसन्नता ऐसी नही थी जैसी कोई नया खिलौना मिलने से होती है, वल्कि यह तो भगवान् से और सबसे प्रेम के कारण उत्पन्न प्रसन्नता थी।" ___ ऐसी बात नही है कि बच्चे प्राय या काफी देर तक समा-भवन मे बैठते ये । जव उनके जी मे आता वे सभा-भवन मे वैठ जाते, प्राय वे इधर-उधर खेलते रहते थे। __ जव सबसे छोटी लडकी फ्रेनिया सात वप की थी, दूसरे दोनो बच्चे अपने मित्रा के बारे में बात कर रहे थे और वह हालांकि उसके कोई मित्र नहीं थे, पीछे नही रहना चाहती थी, इसलिए कहने लगी कि डॉ० सैयद उसके ससार मे सर्वोत्तम मित्र हैं। श्रीभगवान को यह बात बता दी गयी।" "ओह ।" उन्होंने ऊपरी तौर से दिलचस्पी दिखाते हुए कहा । 'और उसकी मां ने कहा, भगवान् के बारे मे तुम्हारा क्या ख्याल है ?" "ओह ।" इस बार उन्होंने अपना सिर हिलाया और वास्तविक दिलचस्पी प्रदर्शित की। फेनिया ने कहा, "भगवान ससार मे नही हैं।" "मोह !" वह खुशी-खुशी सीधे होकर बैठ गये, उन्होने अपनी तजनी अंगुली नाक पर इस तरीके से रन ली जैसे कि उन्होंने आश्चय प्रकट करते हुए रखी थी। उन्होंने इस कहानी का तमिल मे अनुवाद कर लिया और सभा भवन मे भाने वाले अन्य व्यक्तियो को भी यह कहानी सुनायी। बाद मे डॉ. सैयद ने फ्रेनिया से पूछा अगर भगवान् ससार मे नही थे तो वह कहां थे, और उसने उत्तर दिया, "वह हर जगह हैं।" फिर भी उन्होंने कुरान के तज मे अपना कथन जारी रखते हुए कहा, "जब हम भगवान् को तस्त पर बैठे हुए, खाते, पीते और चलते हुए देखते हैं, हम किस तरह कह सकते हैं कि वह ससार मे रहने वाले हमारे जैसे आदमी नहीं हैं।" वालिका न उत्तर दिया, "हमे किसी और विषय पर बातचीत करनी चाहिए।" परन्तु भक्तो की चर्चा ईर्ष्याजनक है क्योकि अन्य भी भक्त है जिनकी चर्चा से जा सकती है । उदाहरण के लिए बहुत कम भक्त श्रीभगवान् से इस प्रकार
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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