SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीरमणाश्रम ११६ था कि हर अवस्था मे नियमो का पालन किया ही जाना चाहिए। उनके प्रत्येक कार्य की तरह यह काय भी साभिप्राय था। ____वह एक ऐसे माग पर चल रहे थे, जिस पर व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से तिमिराच्छन्न कलियुग की परिस्थितियो मे चलना ही चाहिए। अगर वह अपने अनुयायियो से प्रतिकूल परिस्थितियो मे आत्म तत्त्व को स्मरण रखने के लिए कहते थे, तो वह आश्रम के सभी नियमो के पालन द्वारा उनके सम्मुख उदाहरण भी प्रस्तुत करते थे। इसके अतिरिक्त वह उन लोगो से सहमत नहीं ये, जो अपने उद्देश्य से विरत होकर आश्रम के प्रबन्ध सम्वन्धी झगडो मे उलझे रहते थे। वह कहा करते थे, "लोग मोक्ष की तलाश मे आश्रम मे आते हैं और फिर आश्रम की राजनीति में फंस जाते हैं। जिस उद्देश्य के लिए वह यहाँ आये थे उसे सवथा भूल जाते हैं ।" अगर उन्हें इन्ही कामो मे दिलचस्पी लेनी थी तो फिर इसके लिए उन्हें तिरुवन्नामलाई आने की क्या आवश्यकता थी। कभी-कभी लोग आश्रम के सम्बन्ध मे विरोध और असन्तोप भी व्यक्त करते थे। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह विलकुल निराधार थे, परन्तु श्रीभगवान् इनकी ओर ध्यान नहीं देते थे। एक बार मद्रास से भक्तो, व्यापारियो तथा व्यावसायिक फमचारियो का एक दल एक विशेष बस द्वारा आश्रम के वतमान प्रवन्धको के पदत्याग और नये प्रवन्धको की नियुक्ति की मांग लेकर आया । वह समा-कक्ष मे चले गये और श्रीभगवान् के सम्मुख बैठ गये । उन्हें उनके आगमन के प्रयोजन के सम्बन्ध मे नही बताया गया था परन्तु उन्होंने उनका रुक्ष भांप लिया था। वह शान्त भाव से बैठ गये, उनका चेहरा कठोर, उदासीन और शिला के समान अपरिवतनीय था। वह उनके सामने अस्थिर हो उठे, एक-दूसरे की ओर देखने लगे, साँवाहोल होने लगे, परन्तु किसी को भी वोलने का साहस न हुआ। अन्त मे वह सभा-भवन से उठ खडे हुए और जैसे आये थे वैसे ही वापस मद्रास लौट गये । फिर श्रीभगवान को उनके आने का प्रयोजन बताया गया। उन्होंने कहा, "मैं नही जानता कि यह यहां किस लिए माये थे। वह यहां अपना सुधार करने के लिए आते हैं या आश्रम का।" श्रीभगवान् को अगर कोई नियम केवल कष्टसाध्य ही नहीं बल्कि अनुचित प्रतीत होता था तो वह इसका पालन किसी अवस्था मे नही करते थे। उहोंने विरूपाक्ष कन्दरा पर टैक्स लगाने को स्वीकार नहीं किया था। उस समय भी उनका तरीका विरोध का नहीं बल्कि अपने व्यवहार द्वारा इस अन्याय की ओर ध्यान आकर्षित करने का था। एक समय ऐसा था जब आश्रम के भोजन कक्ष म पहले ही सब के लिए भोजन परोस दिया जाता था, परन्तु सबके लिए समुचित कॉफी की व्यवस्था करना सम्भव नहीं था। इसलिए साधारण व्यक्तियो
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy