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________________ १२० रमण महर्षि को जो कि कक्ष के जन्त मे दूर खाने के लिए बैठते थे, कॉफी के स्थान पर पानी दिया जाता था। श्रीभगवान् ने इसे देख लिया-~उनकी पैनी दृष्टि से कोई भी चीज नही वचती थी और उन्होने कहा, "मुझे भी पानी दीजिए।" इसके बाद से वह पानी पीने लगे और उन्होने कॉफी कभी भी स्वीकार नही की। पहले भी कई बार ऐसा हुआ था जब श्रीभगवान् ने कॉफी छोड दी थी, परन्तु रसोइए और सेवक यह सोच कर कि शायद ऐसा वह उनकी भत्सना के लिए कर रहे है, उन्हे कॉफी पीने के लिए राजी कर लेते थे। श्रीभगवान् को दोपहर के भोजन के बाद पान खाने की भी आदत थी। एक दिन उनका सेवक उनके लिए पान लगाना भूल गया। इस बात का पता चल गया और जल्दी ही पान तैयार किया गया और उनके सामने रखा गया, परन्तु उन्होने इसे लेने से सर्वथा इन्कार कर दिया, शायद यह इस बात का सकेत था, “यह अनावश्यक आदत है । मैं पान क्यो लूं ?" उनसे प्रार्थना की गयी कि वह कम से कम यही प्रदर्शित करने के लिए कि उन्होने सेवक को क्षमा कर दिया है, पान स्वीकार कर लें परन्तु उन्होने कहा, "अगर पान खाना बुरी आदत है, तो मैं इसे एक बार भी क्यो खाऊँ ?" और उन्होने फिर कभी पान नही खाया । एक वार, जव वह काफी वृद्ध हो गये थे और गठिये के कारण उनके घुटने कठोर जोर विकृत हो गये थे, यूरोपियनो का एक दल आश्रम में आया । इस दल मे एक महिला भी थी जिसे पालथी मार कर बैठने का अभ्यास नही था। वह दीवार का सहारा लेकर बैठ गयी और उसने अपनी टांगे फैला ली । एक सेवक ने, जो शायद यह अनुभव नहीं कर सकता था कि उस व्यक्ति के लिए जो पालथी मार कर बैठने का अभ्यस्त नही है, यह काय कितना कठिन है, उमसे टांगें न फैलाकर बैठने के लिए कहा । घबराहट के कारण उस महिला का चेहरा लाल हो उठा और उसने अपनी टांगें सिकोड ली । तत्काल ही श्रीभगवान् भी सीधे और पालथी मार कर बैठ गये। घुटनो मे दद होने वे वावजूद, वह पालथी मार कर बैठे रहे । जव भक्तो ने उनसे वैमा न करन के लिए कहा तो उन्होने उत्तर दिया, "अगर आश्रम का यही नियम है तो अन्य व्यक्तियो के समान मुझे भी इसका पालन करना होगा। अगर पर फैला कर वंठना दूसरो का अनादर करना है तो मैं सभा-भवन मे बैठे प्रत्येक व्यक्ति का अनादर कर रहा हूँ।" सेवक सभा-कक्ष से जा चुका था, परन्तु उसे वापस बुलाया गया और उसने भद्र महिला से कहा कि वह जैसे भी चाहे मुविधापूर्वक बैठे । तव भी श्रीभगवान् को टांगे फैला कर बैठने के लिए मनाना बहुत कठिन था। प्रारम्भिक वर्षों मे कभी-कभी श्रीभगवान् को आलोचना का भी मामना
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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