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________________ पशु ११३ लगी। तत्काल ही वन्दरो की एक टोली सडक के किनारे के जगली अजीरो के वृक्षो पर चढ गयी और उनकी शाग्वाओ को जोर-जोर से हिलाने लगी। सडक पके हुए अजीर के फलो से भर गयी और वन्दर भाग गये, उन्होने स्वय एक भी अजीर नही खायी । उसी समय महिलाओ का एक दल पानी से भरे हुए घडे लेकर वहाँ उपस्थित हो गया। ___श्रीभगवान् का सबसे प्रिय पशु-भक्त गाय लक्ष्मी थी। गुडियाथम के निकट कुमारमगलम के निवासी अरुणाचल पिल्लई सन् १९२६ मे इस वछिया को उसकी मां के साथ माश्रम मे लाये थे और उन्होने इन्हें श्रीभगवान् को भेंट रूप मे दिया था। वह इस भेंट को स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक थे क्योकि उस समय आश्रम मे गायो के लिए स्थान नहीं था। परन्तु अरुणाचल पिल्लई ने उन्हें वापस ले जाने से विलकुल इन्कार कर दिया। एक भक्त रामनाथ दीक्षितार ने इनकी देखभाल करने का वचन दिया इसलिए इन्हे आश्रम मे रख लिया गया । दीक्षितार ने लगभग तीन महीने तक इनकी देखभाल की और फिर इन्हें नगर मे किसी गोपालक के पास छोड दिया गया । उसने इन्हे लगभग एक वप तक अपने पास रखा और जब वह एक दिन श्रीभगवान् का दशन करने आया तो इन्हें अपने साथ लेता आया । ऐसा लगता है कि श्रीभगवान् के प्रति बछिया को सहज आकषण हो गया था। उसने आश्रम जाने वाले माग को पहचान लिया था। अगले दिन वह अकेली लगभग दो मील की दूरी तय करके वापस आ गयी। इसके बाद वह प्रतिदिन प्रात काल आश्रम आती और सायकाल नगर को वापस लौट जाती। बाद मे, जब वह आश्रम मे रहने लगी, वह सीधे ही, बिना किसी और की तरफ ध्यान दिये श्रीभगवान के पास जाती। वह हमेशा उसे केला या अन्य कोई पदाथ खाने के लिए देते । वहुत अरसे तक वह प्रतिदिन मध्याह्न भोजन के समय सभा कक्ष मे आती और श्रीभगवान के साथ खाने के कक्ष तक जाती । यह समय की इतनी पावन्द थी कि अगर श्रीभगवान किसी काम में व्यस्त होने के कारण निर्धारित समय से अधिक वैन्ते, तो उसके आने पर जब वह घडी देखते तो उन्हें पता चलता कि लाने का समय हो गया है । लक्ष्मी ने कई वछडो को जन्म दिया, कम से कम तीन बछठे तो भगवान् वो जयन्ती (जन्मदिन) के दिन पैदा हुए थे। जब आश्रम में एक पक्की गोशाला बनायी गयी तब यह निणय किया गया कि उद्घाटन के दिन लक्ष्मी ही सबसे पहले इसमे प्रवेश करे । परन्तु जव उद्घाटन का समय आया, उसका वही पता नहीं चला। वह श्रीभगवान के पास चली गयी थी, और जब तक वह नही आये, वह भी वहां से नहीं हिली। इसलिए पहले श्रीभगवान् ने गोशाला में प्रवेश किया और बाद मे उनके पीछे लक्ष्मी ने। न
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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