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________________ ११२ रमण महप मुझे हलकी सी चोट आई । दण्डस्वरूप, उसे कुछ दिन तक मेरे पास आने और मेरी गोद मे चढने की आज्ञा नही दी गयी, परन्तु उसने नम्रता और क्षमायाचना का भाव प्रदर्शित किया और फिर अपने प्रिय स्थान पर आ बैठा । यह उसका दूसरा अपराध था । प्रथम अवसर पर, मैंने उसका गरम दूध का प्याला अपने होठों के पाम रखा था और उसे ठण्डा करने के लिए उसमे फूक मार रहा था । वह इस बात से चिढ गया । उसने मेरी आँख पर प्रहार किया, परन्तु मुझे कोई गंभीर चोट नही आई । वह तत्काल ही मेरी गोद मे आ गया और दीनता भरे शब्दो मे चिल्लाने लगा, भूल जाओ और क्षमा कर दो । इसलिए उसे क्षमा कर दिया गया ।" बाद मे नोदी अपनी टोली का राजा वन गया । श्रीभगवान् एक अन्य वन्दर राजा की भी चर्चा किया करते थे उसने अपनी टोली के दो उद्दण्ड वन्दरो को टोली से बाहर निकालने का वहादुराना कदम उठाया था । इस पर टोली ने विद्रोह कर दिया। राजा ने उसे छोड दिया और वह अकेला जगल मे चला गया । वहाँ वह दो सप्ताह तक रहा। जब वह वापस लौटा उसन अपने आलोचक और विद्रोही वन्दगे को चुनौती दी। दो सप्ताह की तपस्या के कारण वह इतना वलवान हो गया था कि किसी ने भी उसकी चुनौती का जवाब देने का साहस नही किया । एक दिन प्रात काल यह ममाचार मिला कि आश्रम के निकट एक वन्दर दम तोड़ रहा है । श्रीभगवान् उमे देखने गये । यह राजा वन्दर था । इसे आश्रम में लाया गया और यह श्रीभगवान् का सहारा लेकर बैठ गया । दोनो निष्कासित वन्दर निकट ही एक वृक्ष पर बैठे हुए यह सब देख रहे थे, श्रीभगवान् आसन परिवर्तन के लिए हिले और मरणोन्मुख वन्दर ने महज वृत्ति मे उसकी टांग को काट लिया । उन्होने अपनी टाँग की ओर इशारा करते हुए एक वार कहा था, “बन्दर राजाओ की कृपालुता के ऐसे चार चिह्न मेरी टांग पर है।" तब वन्दर राजा ने इम ससार से विदा होते हुए आखिरी कराह भरी । दोनो बन्दर जो वृक्ष पर चढे हुए यह देख रहे थे, ऊपर-नीचे कूदने लगे और शोक से आर्त्तनाद करने लगे । मृत वन्दर के शरीर को सन्यासी के से सम्मान के साथ दफना दिया गया इसे पहले दून और फिर पानी से नहलाया गया, इस पर पवित्र राख मली गयी, इसे एक नया वस्त्र ओढाया गया, इसका मुँह खुला रखा गया और इसके सामने कपूर जलाया गया । इसे आश्रम के निक्ट दफनाया गया और इसकी कवर पर एक प्रस्तर का स्मारक खड़ा किया गया । वन्दगे की कृतज्ञता की एक विचित्र कहानी श्रीभगवान् सुनाया करते थे । एक वार श्रीभगवान् पहाडी की तलहटी मे अपने भक्तो के साथ सैर कर रहे ये । जब वह पचैयाम्मान कोयल के निकट पहुँचे उन्ह भूख और प्यास मताने
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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