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________________ कुछ प्रारम्भिक भक्त हम्फीज ( थोडी देर रुक कर ) स्वामिन्, क्या में श्रीकृष्ण और ईसा मसीह की तरह चमत्कार कर सकता हूँ ? ६७ भगवान् क्या उनमे से किसी ने चमत्कार किये ? जब किसी ने चमत्कार किये तो ऐसा अनुभव करो कि यह वही था जो यह चमत्कार कर रहा था । इम्फीज नही, स्वामिन् । थोडे अरसे बाद हम्फ्रीज़ ने फिर भगवान के दर्शन किये । "मैं मोटर साइकिल से गया और कन्दरा तक चढ गया । सत ने जब मुझे देखा तो वे मुस्कराए परन्तु उन्हें तनिक भी आश्चय नही हुआ । हम अन्दर गये और बैठने से पूर्व उन्होने मुझ से एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछा, जिसके सम्बन्ध मे वे जानते थे । प्रत्यक्षत, ज्योही उन्होने मुझे देखा त्योही वे मुझे पहचान गये थे। जो कोई उनके पास आता है, वह खुली पुस्तक के सदृश होता है और उनकी प्रथम दृष्टि से ही इसकी विषयवस्तु उनके सम्मुख आ जाती है । "उन्होने कहा, 'आपने अभी तक भोजन नही किया, आपको भूख लगी होगी ।' " मैंने स्वीकृति-सूचक सिर हिला दिया और उन्होने तत्काल ही अपने एक शिष्य से मेरे लिए भोजन --- चावल, घी, फल आदि लाने के लिए कहा। मैंने उँगनियो से यह भोजन खाया क्योकि भारतीय चम्मचो का प्रयोग नही करते । यद्यपि मैने इस प्रकार खाने का अभ्यास कर लिया था तथापि में अच्छी तरह नही खा पा रहा था । इसलिए उन्होने मुझे खाने के लिए नारियल का चम्मच दिया। वे मुस्कराते जाते थे और बीच-बीच में बातें करते जाते थे । उनकी मुस्कराहट से बढकर अधिक सुन्दर वस्तु की आप कल्पना नही कर सकते । उन्होने मुझे गाय के की तरह शुभ और स्वादिष्ट नारियल का पानी पीने के लिए दिया, दूध इसमे उन्होने थोडी-सी चीनी डाल दी थी । "खाना खाने के बाद भी मेरी भूख नही मिटी थी और वे इसे जानते थे। उन्होंने और खाना लाने का आदेश दिया। वे सब कुछ जानते हैं। पूरा भोजन कर चुकने के बाद जब दूसरो ने मुझसे फल खाने का अनुरोध किया तब उन्होने उन्ह तत्काल रोक दिया । "मुझे अपने पीने के तरीके के लिए क्षमा माँगनी पडी । उन्होने केवल इतना कहा, 'परवाह मत करो।' हिन्दू इसके सम्बन्ध मे बहुत सचेत होते हैं । वे अपने ओठो से वतन को कभी मुह नही लगाते बल्कि मी ही पेयद्रव को मुँह मे डालते हैं । इसलिए बिना छूत के भय के बहुत से लोग एक ही पात्र में पी सकते हैं । जव में भोजन कर रहा
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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