SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ ग्मण महर्षि था तब वे दूसरो को मेग परिचय ठीक-ठीक बता रहे थे। परन्तु पहले उन्होंने मुझे केवल एक बार देखा था और इस बीच उन्होने सहस्रो व्यक्तियो को देखा था। उन्होने परोक्ष-ज्ञान का आश्रय लिया, जैसे हम विश्व-कोप की ओर निर्देश करते हैं । मैं लगभग तीन घण्टे तक उनका उपदेश सुनता रहा। "वाद मे मुझे प्यास लगी। क्योकि चढाई बढी कठिन थी, परन्तु मैने मुंह से कुछ नही कहा । फिर भी उन्ह पता चल गया और उन्होंने एक शिष्य से लेमनेड लाने के लिए कहा। "अन्त मे मैंने उनके मम्मुरव नत मस्तक होकर विदाई ली और अपने बूट पहनने के लिए मै कन्दग मे बाहर गया । वे भी बाहर आये और उहोने मुझसे फिर आने के लिए कहा । "यह वडी विचित्र वात है कि उनकी उपस्थिति मे व्यक्ति मे कितना महान् परिवर्तन हो जाता है।" इसमे कोई सन्देह नहीं कि जो भी व्यक्ति श्रीभगवान् के मम्मुख वैठता था, उनके लिए खुली पुस्तक के समान था, फिर भी हम्फ्रीज़ की परोक्षनान सम्बन्धी धारणा गलत थी। यद्यपि लोगो की सहायता और उनका मार्ग दर्शन करने के लिए श्रीभगवान् उन्हे वडी गहराई से देखते ये तथापि वह मानवीय धरातल पर इस प्रकार की शक्तियो का प्रयोग नहीं करते थे । चेहरो की उनकी स्मृति इतनी चमत्कारिक थी जितनी कि पुस्तको की। उनके दर्शनो के लिए महतो लोग आते थे, परन्तु जो भक्त एक बार उनके दशन कर गया वह उसे कभी भी नही भूलते थे । अगर कोई व्यक्ति वो वाद वापस आता, वह फिर भी उसे पहचान लेते । न ही वह किसी भक्त की जीवनगाथा को कभी भूलते थे । नरसिंहय्या ने उनमे हम्फ्रीज़ के सम्बन्ध में अवश्य चर्चा की होगी । जब किसी विषय के सम्बन्ध मे सर्वोत्तम रीति से वात न होती वह अत्यन्त विवेक का परिचय देते परन्तु उनमे सामान्यत वाल-सुलभ मरलता थी और वह वालक की तरह किसी व्यक्ति के सम्बन्ध मे उमके मामने ही बात करते, न तो स्वय ही व्यग्रता का परिचय देते और न दूसरे को व्यग्न करते । खाने-पीने के सम्बन्ध मे वह न केवल सावधान रहते थे वल्कि मुम वात की पूरी देखभाल करते थे कि अतिथि की तृप्ति हुई है या नही । हम्फ्रीज़ महोदय मे चमत्कारिक मिद्वियो का आविर्भाव होने लगा, परन्तु श्रीभगवान् ने उन्हे चेतावनी दी कि वह उनमे आसक्त न हा । हम्फ्रीज़ ने अपनी प्रवल इच्छा शक्ति के वल पर इस प्रलोभन पर विजय भी पायी। वस्तुत श्रीभगवान् के प्रभाव के कारण तात्रिक शक्तियो मे उमकी दिलचम्पी बिलकुल समाप्त हो गयी।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy