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________________ रमण महर्षि नरसिंहय्या ने सीधा-साधा उत्तर दिया, "मैं नही जानता कि सूक्ष्म शरीर क्या होता है, मुझे इस भौतिक शरीर के अतिरिक्त अन्य किसी शरीर का ज्ञान नही ।" फिर भी, म्वप्न के सत्य की परीक्षा करने के लिए उसने दूसरे पुलिस अफमर को पटाने के लिए जाने से पूर्व हम्फ्रीज़ की मेज़ पर कुछ फोटो रख दिये । हम्फ्रीज़ ने उन्ह देवा और तत्काल ही उनमे मे गणपति शास्त्री का फोटो छाट लिया । हम्फ्रीज़ के शिक्षक नरमिय्या वापस आये तब उन्होंने कहा "ये रहे तुम्हारे गुरु ।” ___ नरसिंहय्या न इसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद हम्फ्रीज़ वीमार पड गये आं उन्हे स्वास्थ्य-लाभ के लिए ऊटकमण्ड जाना पड़ा। कई महीने वाद वह वेल्लोर वापस लौटे । जब वे वापस आये तव उन्होने नरसिंहय्या को फिर आश्चर्य मे डाल दिया। इस बार उन्होंने स्वप्न मे देवी एक पर्वतीय कन्दग का चित्र वीचा। इसके मामने एक नदी वह रही थी और इमके प्रवेश द्वार पर एक ऋपि खडे हुए थे। यह विरूपाक्ष कन्दरा ही हो सकती थी । नरसिंहैय्या ने अव हम्फ्रीज़ को श्रीभगवान् के सम्बन्ध मे वताया। हम्फ्रीज़ का गणपति शास्त्री ने परिचय कराया गया और उनके हृदय मे शास्त्रीजी के प्रति सम्मान की भावना पैदा हो गयी । इसी मास अर्थात् नवम्बर, १९११ को उन तीनो ने तिरुवन्नामलाई की यात्रा के लिए प्रस्थान कर दिया । श्रीभगवान् के महामौन के सम्बन्ध मे हम्फ्रीज़ की प्रथम धारणा पहले ही एक प्रारम्भिक अध्याय मे उद्धृत की गयी है । उसी पत्र मे जहाँ से यह लिया गया है, उन्होंने यह भी लिखा, "सबसे अविक प्रभावोत्पादक दृश्य वह है जव सात वर्ष की आयु तक के छोटे-छोटे बच्चे स्वय पहाडी पर चटते और महर्षि के निकट आकर बैठते है, भले ही वे कई दिनो तक मौन धारण किये रहें और उनकी और दृष्टिपात न करें । ये बच्चे वहां खेलते नहीं बल्कि शान्त भाव से वैठे रहते हैं।" गणपति शास्त्री की तरह हम्फ्रीज़ भी सनार की नहायता करने के इच्छुक थे। हम्फ्रीज़ स्वामिन्, मैं ससार की किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ? भगवान् अपनी महायता करो और इस प्रकार आप मसा की महायना करेंगे। हम्फ्रीज़ मैं ममार की महायता करना चाहता हूँ ? क्या मैं इसमे सहायक न होऊंगा? भगवान् हां, अपनी सहायता द्वारा आप समार की सहायता करेंगे । आप ससार मे हैं, आप ससार हैं । आप समार से भिन्न नहीं हैं और न ही मसार आप से भिन्न है।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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