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________________ रमण महर्षि का परामर्श मुझे देगा, तो सच्चा परामर्श कौन देगा ?" श्रीभगवान् ने उन्हे विश्वास दिलाया कि यही सच्चा मार्ग है। विकास के अगले चरण का स्वय मुदालियर ने इस प्रकार वणन किया है "मैंने कुछ समय तक इस स्वप्न-उपदेश का अनुसरण किया, फिर मुझे दूसरा स्वप्न आया। इस बार जव श्रीभगवान् प्रकट हुए, मेरे पिता मेरे निकट खडे हुए थे। उन्होने मेरे पिता की ओर सकेत करते हुए कहा, "यह कौन हैं ?" उत्तर की दार्शनिक शुद्धता के प्रति कुछ सकोच के साथ मैंने उत्तर दिया, "मेरे पिता।" महपि साभिप्राय मुस्करा उठे और मैंने कहा, "मेरा उत्तर सामान्य वोलचाल की भापा के अनुसार है, न कि दर्शन की", क्योकि मुझे यहां स्मरण था कि मैं शरीर नही हूँ। महर्षि ने मुझे अपने निकट खीच लिया और अपनी हथेली पहले मेरे सिर पर रखी, फिर मेरी दाहिनी छाती पर और अपनी अंगुली से मेरे चूचुक को दवाया। इससे मुझे कुछ पीडा अनुभव हुई। परन्तु यह उनकी अनुकम्पा थी, मैंने इसे शान्तिपूर्वक सहन कर लिया । तब मुझे इस वात का पता नहीं था कि उन्होंने मेरी वायी छाती के बजाय दायी छाती को क्यो दवाया।" ___इस प्रकार मौन दीक्षा ग्रहण करने मे असफल होकर, मुदालियर को स्वप्न मे स्पण द्वारा दीक्षा दी गयी। ____ नटेश उन व्यक्तियो मे से थे, जो शान-प्राप्ति की खोज मे गृहस्थ जीवन का परित्याग कर अकिंचन भिक्षुक की तरह जीवनयापन करने के लिए उत्सुक थे। परन्तु श्रीभगवान् ने इसे प्रोत्साहन नही दिया । “जिस प्रकार आप यहाँ रहते हुए गृहस्थ जीवन की चिन्तामो को पास नही आन दते, उसी प्रकार आप घर जाकर भी सासारिक चिन्ताओ से सवथा उदामीन और अनासक्त रहे ।" मुदालियर में अब भी अपने गुरु के प्रति पूण निभरता जोर दृढ विश्वास का अभाव था। उन्होने श्रीभगवान् के स्पष्ट आदश के वावजूद गृह परित्याग कर सन्याम ले लिया। उन्हे अनुभव हुआ कि श्रीभगवान् की भविष्यवाणी के अनुसार उनके माग की कठिनाइया वढ गयी है, कम नही हुइ । कुर वप वाद वह परिवार मे वापस लौट आये और फिर वाम में जुट गये। इसके बाद उनका भक्तिभाव बढता गया। उन्हान श्रीभगवान् को प्रशस्ति में तमिल मे पविताओ की रचना की। और अत मे उन्ह गुरु को वह मौसिप शिक्षाएं प्राप्त हुई, जिनके लिए वह इतने अधिक उत्सुव थे । 'ए फैप्रिज्म ऑफ इस्ट्रक्शन' नामक पुस्तक मे गुरु और उसकी अनुपम्पा ये मिद्धान्त का अत्यन्त मुदर वणन है और इसमे अधिकाशत श्रीनटेश के प्रश्ना या उत्तर दिया गया है। । इसका कारण १२वें अध्याय मे दिया गया है।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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