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________________ हानमेषां क्लेशवदुक्तम्।।28।। उन प्रत्ययों, अवधारणाओं से निवृत्त हो जाना क्लेशों से निवृत्ति के समान कहा गया है। प्रसंख्यानेऽप्यकुसीदस्य सर्वथा विवेकख्यातेर्धर्ममेघ: समाधिः।। 129।। वह जिसमें समाधि की सर्वोच्च अवस्थाओं के प्रति भी इच्छारहितता का सातत्य बना हुआ है और जो विवेक के चरम का प्रवर्तन करने में समर्थ है, उस अवस्था में प्रविष्ट हो जाता है जिसे धर्ममेध समाधि कहा जाता है। तत: क्लेशकर्मनिवृत्तिः।। 130// तब क्लेशों एवं कर्मों से मुक्ति हो जाती हैं। तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्वेयमल्पम् ।। 131// जब सभी मल रूप आवरण, विकृतियां और अशुद्धियां हट जाती हैं, तब वह सभी कुछ जो मन से जाना जा सकता है, समाधि से प्राप्त असीम ज्ञान की तुलना मे अत्यल्प हो आता है। तत: कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम् ।। 132 ।। अपने उददेश्य को परिपूर्ण कर लिए जाने के कारण तीनों गुणों में परिवर्तन की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। क्षणप्रतियोगीपरिणामापरान्तनिाहमः क्रमः।। 133 // कैवल्य समाधि की अवस्था है, जो पुरुषार्थ से शून्य हुए गुणों के अपने कारण में लीन होने पर उपलब्ध होती है। इस अवस्था में पुरुष अपने यथार्थ स्वरूप में, जो शुद्ध चेतना है, प्रतिष्ठित हो जाता है। समाप्त।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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