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________________ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, और यदि अब आपने अपनी पुरानी जल- पक्षी वाली कहानी सुनाई तो मैं वास्तव में मान जाऊंगा कि आप निरे पागल हैं। वे मूर्खतापूर्ण दिन विदा हो चुके हैं जब लोग जीवन - निषेधक विचारधाराओं, जीवन की निंदाओं के रूप में सोचा करते थे। फ्रायड के बाद मनुष्य ने काम भावना को अधिक स्वाभाविक ढंग से स्वीकार कर लिया है। इस संसार में एक बड़ी क्रांति घटित हो चुकी है। अब निंदात्मक रूप में विचार करना समकालीन होना नहीं है। अब कृष्णप्रिया का प्रश्न ठीक था, यदि उसने इसे पांच सौ वर्ष पहले पूछा होता, लेकिन अब? असंगत है यह। और वह भी मेरे आश्रम में? आज इतना ही। प्रवचन 99 - कैवल्य योग - सूत्र: (कैवल्यपाद) विशेषदर्शिन आत्मभावभावनाविनिवृत्तिः 112511 जब व्यक्ति विशेष को देख लेता है, तो उसकी आत्मभाव की भावना मिट जाती है। तदा विवेकनिम्नं कैवल्यप्रारभारं चित्तम् । 12811 तब विवेक उन्मुख चित्त कैबल्य की ओर आकर्षित हो जाता है। तच्छिद्रेषु प्रत्ययान्तरणि संस्कारेभ्यः ।। 2711 के संस्कारों के बल के माध्यम से विवेक ज्ञान के अंतराल में अन्य प्रत्ययों, अवधारणाओं का उदय होता है। इनका निराकरण भी अन्य मनस्तापों की भांति किया जाना चाहिए।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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