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________________ किया है। इसलिए जो व्यक्ति शिखर पर हेलिकाप्टर द्वारा पहुंचता है, और वह व्यक्ति जो अपने पैरों पर चल कर गया है, अलग शिखरों पर पहुंचते हैं। वे कभी भी एक ही शिखर पर नहीं पहुंचते। तुम्हारे साधन तुम्हारे साध्य बदल देते हैं। जो व्यक्ति हेलिकाप्टर से उतारा गया है, उसे कुछ अच्छा लगेगा, वह कहेगा, ही, यह खूबसूरत है। उसका हर्ष उस आदमी जैसा होगा जिसका पेट खाने से एकदम भरा हआ है, और तभी एक सुस्वाद् भोजन की एक प्लेट उसके सामने आ जाती है, वह कहता है, अच्छा है। वह इसे थोड़ा बहुत चख सकता है-जरा सा, लेकिन उसका पेट इतना ज्यादा भरा है कि उसे जरा भी भूख नहीं है। और उसके पास एक ऐसा व्यक्ति खड़ा है जो भूखा है। शिखर तक पहुंचने के लिए व्यक्ति में अभीप्सा भी होनी चाहिए। और यह अभीप्सा तुम्हारे चढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है। तुम अधिकाधिक अभीप्सा से भरते हो, तुम और-और थकते जाते हो, तुम और- और तत्पर होते जाते हो... और जब तुम शिखर पर पहुंच जाते हो तो तुम विश्राम करते हो। तुमने इसे अर्जित किया है। जीवन में बिना अर्जित किए तुम्हें कुछ नहीं मिल सकता और जब तुम जीवन के साथ चालाकी करने की कोशिश करते हो तो तुम अनेक अवसरों को खो दोगे। इसलिए उन समस्याओं को छोड़ दो जो तुम्हारी नहीं हैं। उन समस्याओं को छोड़ दो जिन्हें तुमने दूसरों से सीख लिया है। उन समस्याओं को छोड़ो जो तुम्हारे जड़ मताग्रहों से जन्मी हैं। तरल हो जाओ, गतिमय हो। प्रतिपल अतीत के प्रति मरो और पुन: जन्म लो ताकि तुम पर कोई मान्यता, जीवन के प्रति कोई जड़ दृष्टिकोण हावी न रहे, और तुम सदा खुले, उपलब्ध और प्रतिसंवेदनात्मक रहो। तब सिर्फ वे समस्याएं ही रहेंगी जिनकी आवश्यकता है, जो तुम्हारे विकास का एक अवयव हैं। जैसा कि मैं देखता हं लोग हैं जो डरें में बंधा जीवन जी रहे हैं, वह सच्चा जीवन नहीं है, बस खोखली मद्राएं मात्र हैं। उनकी समस्याएं भी अर्थहीन, खोखली हैं। कोई आता है और पूछता है, क्या परमात्मा है? यह समस्या खोखली है। तुम्हें परमात्मा से क्या लेना-देना? तुमने तो अभी स्वयं को जाना। प्रारंभ से ही आगे बढ़ो, प्रारंभ से ही शरू करो। तमने तो अभी जानने वाले को ही नहीं जाना। तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि तुम्हारे भीतर की यह जागरूकता क्या है। और तुम परमात्मा के बारे में पूछ रहे हो, तम उस परम जागरूकता के बारे में पूछ रहे हो, आत्यंतिक जागरूकता के बारे में? और जो जागरूकता तुम्हें भेंट स्वरूप मिली हुई है, उसके बारे में तुमने जाना भी नहीं। जो पुष्प तुम्हारे हाथ में है उसके बारे में तुमने सीखा ही नहीं और तुम परम खिलावट के बारे में पूछ रहे हो। मूढ़तापूर्ण है यह बात। परमात्मा के बारे में सब कुछ भूल जाओ। बिलकुल अभी तो अपने अस्तित्व में प्रवेश करो और देखो परमात्मा ने तुम्हें क्या दिया है, समग्र अस्तित्व ने तुम्हें क्या दिया है। और अगर तुम इसे जान सके तो तुम्हारे लिए और भी द्वार खुल जाएंगे। जितना तुम जानते हो उतने ही ज्यादा रहस्य अनावृत हो
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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