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________________ जाते हैं। और परमात्मा तो परम रहस्य है - जब तुमने और सब कुछ जान लिया, और अब जानने को कुछ न बचा, और तुम जीवन की सारी पीड़ाओं, संतापों और दुश्चिताओं को झेल चुके हो, सिर्फ तब। परमात्मा अंतिम उपहार है, तुम्हें इसे अर्जित करना पड़ेगा । ऐसे प्रश्न मत पूछो जो तुम्हारे साथ असंगत हो। और खोखली मुद्राओं का, ढर्रे में बंधा जीवन मत जीयो। लोग चर्च चले जाते हैं, खोखला प्रयास है यह । वे वहां कभी जाना नहीं चाहते थे; फिर तुम क्यों जा रहे हो? क्योंकि हर कोई जा रहा है, क्योंकि यह एक सामाजिक औपचारिकता है, क्योंकि अगर तुम चर्च जाओगे तो लोग अच्छा समझते हैं, क्योंकि इससे तुम्हे एक प्रकार का सम्मान मिलता है ये लोग जीसस के पास नहीं गए होते, लेकिन वे चर्च जाते हैं। चर्च सम्मानित हैं, जीसस कभी न थे। जीसस के पास जाना मुश्किल था। जीसस के पास जाना, तुम्हारी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाना था। तुम यहां हो, तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगानी पड़ती है, क्योंकि मेरे पास आने से तुम्हें कोई प्रतिष्ठा तो मिलने से रही। उसे खो तो सकते हो, परंतु पा नहीं सकते। यह औपचारिक नहीं हो सकता, क्योंकि महज एक औपचारिकता के लिए कोई क्यों इतना कुछ दांव पर लगाएगा? यह तो बस हृदय की बात हो सकती है। लोग अपनी प्रार्थनाएं करते हैं, क्योंकि ऐसा किया जाना है, खोखली चेष्टा है यह उनके हृदयों में कोई प्रेम नहीं है, उनके हृदयों में कोई अहोभाव नहीं है और वे प्रार्थना किए चले जा रहे हैं। तब ऐसी समस्याएं उठती हैं जो व्यर्थ हैं। सिर्फ वही करो - जिसके लिए तुममें भावना हो । मैंने सुना है, लगभग अस्सी वर्ष की आयु के भूतपूर्व रेलवे कर्मचारी का घर रेलवे लाइन के निकट था, वह रिटायर हो चुका था, जो भी मालगाड़ी वहां से गुजरती वह उसके डिब्बे गिना करता था। इसकी कोई जरूरत तो नहीं थी, बस पुरानी आदत भर थी। एक रविवार को पारिवारिक पिकनिक के दौरान उसके पुत्र ने गौर किया कि वह गुजरती हुई ट्रेन की उपेक्षा कर रहा है, उसने पूछा, क्यों, आप डिब्बों को क्यों नहीं गिन रहे हैं? के आदमी ने जवाब दिया, में रविवार को काम नहीं करता। अपने जीवन का निरीक्षण करो, उसे ज्यादा सच्चा प्रामाणिक वास्तविक बनाओ। अर्थहीन मुद्राओं के साथ मत चलो, वरना तुम्हारे प्रश्न भी अर्थहीन होंगे। वे समस्याओं की भांति प्रतीत होंगे, परंतु वे वास्तविक समस्या नहीं होंगे। ,
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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