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________________ बदलने की कोशिश करने लगते हो। यदि तुम्हारे सामने ऐसी स्थिति आ जाए जो तुम्हारी विचार पद्धति से मेल न खाती हो, तो तुम अपनी विचार पद्धति बदलने के स्थान पर उस परिस्थिति को बदलने की जी-तोड़ कोशिश करते हो, तभी समस्या का जन्म होता है। हमेशा अपने मन को बदलने को तैयार रहो क्योंकि जीवन को तुम्हारी मान्यताओं के अनुसार नहीं बदला जा सकता है। लेकिन हमने सीख रखा है कि जीवन को किस ढंग से देखें, कैसे उसकी व्याख्या करें, हम बंधी बधाई लीक पर चलते रहते हैं। मैं तुमसे एक कहानी कहना चाहता हूं एक छोटा सा आदमी अपने बॉस से बहुत भयभीत रहा करता था। एक दिन उसने अपने साथ के कर्मचारी को बताया कि वह बीमार है। उसका मित्र बोला, तुम अपने घर क्यों नहीं चले जाते? ओह! मैं ऐसा नहीं कर सकता। क्यों नहीं कर सकते? नासमझ मत बनो, उसे कभी पता नहीं चलेगा, वह तो आज यहां है भी नहीं। अंतत: वह व्यक्ति राजी हो गया और घर चला गया। जब वह वहां पहुंचा, उसने खिड़की से देखा और उसका बॉस वहीं था, उसकी पत्नी के आलिंगन और चुंबन में व्यस्त। इसलिए वह दौड़ता हुआ वापस कार्यालय में पहुंचा! क्या खूब मित्र हो तुम भी, उसने अपने सहकर्मी से कहा, मैं तो फंसता–फंसता बचा। सोचने का बस वही पुराना ढंग। परिस्थिति बिलकुल अलग थी। उसने अपने बॉस को पकड़ लिया होता, लेकिन वही पुराना विचार कि उसका बॉस हमेशा उसे ही पकड़ना. चाहता है। जीवन का निरीक्षण करो, और अपने मन से मत चिपको। तुम्हारी नब्बे प्रतिशत समस्याएं बिना किसी परेशानी के मिट जाएंगी। तुम्हारी दस प्रतिशत समस्याएं बचेंगी, वे अस्तित्व गत हैं। और उनकी वहां जरूरत भी है, क्योंकि तम्हें उनके माध्यम से विकसित होना है। यदि वे भी मिट जाएं तो तुम विकसित नहीं होगे। संघर्ष की जरूरत है। दर्द की आवश्यकता है। पीड़ा की जरूरत है। क्योंकि इसी से तुम्हारा संकेंद्रण होगा, यह तुम्हें और जागरूक बनाएगी। और अगर तुम इसका अतिक्रमण कर सके तो तुम्हें वही आनंद उपलब्ध होगा जो किसी समस्या से पार पाने में मिलता है। यह पर्वतारोहण जैसा है। तुम पहाड़ पर ऊपर की ओर जा रहे हो-थके हुए, पसीना-पसीना, श्वास कठिनाई से चल पार रही है, चोटी पर पहुंचना असंभव मालूम पड़ रहा है, और तभी तुम शिखर तक पहुंच गए, और तुम आकाश के नीचे लेटे हो, और तुम शिथिल हो गए हो, और तुम आराम कर रहे हो, फिर भी तुम प्रसन्न हो कि तुमने चढ़ाई करने का निर्णय लिया था। लेकिन एक कठिन चढ़ाई के बाद ही होता है। तुम उस शिखर पर हेलिकाप्टर से भी जा सकते हो, लेकिन तब तुमने इसे अर्जित नहीं
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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