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________________ लेकिन मनुष्य का मन इसी भांति कार्य करता है, क्योंकि सबसे पहले तुम अपने शरीर के प्रति सजग हुए थे और हर बात इससे संबंधित हो जाती है। जब तुमको एक खास किस्म के अच्छेपन, अपने चारों ओर एक आनंद की अनुभूति होती है, तो निःसंदेह तुमको यह लगता है कि इस शरीर के कारण हो रहा है, क्योंकि, 'मैं स्वस्थ अनुभव कर रहा हूं न कोई रुग्णता, न कोई बीमारी इसीलिए यह वहां है।' तब तुम शरीर को युवा स्वस्थ रखने का प्रयास करते हो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यह अच्छापन तुम्हारे भीतर कहीं गहराई से आता है। ही, एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होती है, वरना वे गहरे जलस्रोत सक्रिय नहीं हो पाएंगे तुम्हारे अंतर्तम केंद्र से अच्छेपन की अनुभूति को बाहर लाने के लिए स्वस्थ शरीर एक वाहन का कार्य करता है, लेकिन यह स्थूल शरीर स्वयं मूल कारण नहीं है। मैं तुमको कुछ कहानियां सुनाता हूं कि मन किस प्रकार से बहुत तर्कयुक्त प्रतीत होता है उर लेकिन कहीं गहराई में हु असंगत परिणाम हुआ करते हैं। एक बार एक प्रोफेसर ने सौ पिस्सुओं को जब उनको वह उचित आदेश दे तब उछलने के लिए प्रशिक्षित किया। जब एक बार उन्होंने संतोषजनक ढंग से यह कार्य कर लिया तो उसने एक कैंची ली और उनके पैर काट दिए। जैसे ही उसको यह पता लगा कि उसके द्वारा कूदने के लिए दिए जाने वाले आदेश का पालन एक भी पिस्सू नहीं कर रहा है, तो उसने अपनी शोध की घोषणा विज्ञान जगत में इस प्रकार से की कि सज्जनों मेरे पास इस बात के अकाट्य प्रमाण हैं कि पिस्सू के कान उनकी टांगों में होते हैं। मानव विचार के पूरे इतिहास में ऐसा अनेक बार हुआ है, टांगें काट दीं, अब वे नहीं कूदते, वे आदेश को नहीं सुनते है तो निस्संदेह, स्वभावतः पिस्सुओं के कान उनकी टांगो में हैं। तर्क नितांत तर्कविहीन निष्कर्षो पर पहुंच सकता है। तर्क नितांत तर्कहीन निष्कर्षो का निष्पादन कर सकता है। शरीर सर्वाधिक स्थूल, सरलतापूर्वक समझ लेने योग्य भाग है, तुम इसको पकड़ सकते हो, तुम इसे प्रशिक्षित कर सकते हो, इसको भोजन और पोषण देकर तुम इसे अधिक स्वस्थ कमा सकते हो। तुम इसे भूखा रख कर इसे मार सकते हो। यह पकड़ में आ जाता है। शरीर से परे ज्ञानातीत का संसार आरंभ होता है। वैज्ञानिक ज्ञानातीत संसार में जाने से जरा भयभीत हैं, क्योंकि वहां पर उनकी कसौटी सही प्रकार से काम नहीं करती है। तब प्रत्येक बात धुंधली से और धुंधली होती चली जाती है। निःसंदेह वे वहीं ठहरते हैं जहां पर प्रकाश है। राबिया - अल- अदाबिया के बारे में एक प्रसिद्ध कथा है। एक संध्या वह गली में किसी वस्तु को खोज रही थी। किसी ने पूछा, तुम क्या खोज रही हो? उसने कहा मेरी सुई खो गई है। इसलिए उन लोगों ने दयालु लोगों ने उसकी मदद करना आरंभ कर दी। वृद्ध स्त्री, निर्धन स्त्री, बेचारी से उसकी, सुई खो गई; प्रत्येक व्यक्ति ने मदद करने का प्रयास किया लेकिन फिर किसी को खयाल आया कि
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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