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________________ कोष, मनस शरीर में जाते हो तो ठीक यही घटित होता है। अब प्राण शरीर भी तुमसे बाहर है, तुम्हारे चारों ओर एक बाड़ की तरह और इसी तरह यह सिलसिला चलता चल जाता है। यह उस परम बिंदु तक जाता है जहां केवल साक्षी बचता है। तब तुम स्वयं को इस भांति नहीं देखते, 'मैं आनंदित हूं तुम स्वयं को आनंद के साक्षी की भांति देखते हो । अंतिम शरीर आनंद शरीर है। इसका विभेद कर पाना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि यह प्रभु के बेहद निकट है। यह प्रभु को करीब-करीब ऐसे घेरे हुए हैं जैसे कि वातावरण ने तुमको घेरा हुआ है। लेकिन इसको जानना पड़ता है। इस अंतिम पड़ाव पर भी जब तुम आहलाद से ओत-प्रोत हो, फिर भी तुमको चरम प्रयास, विभेद का अंतिम प्रयास, और यह देखने का प्रयास कि आनंद तुमसे भिन्न है, करना पड़ता है। यही है मुक्ति, कैवल्य फिर तुम अकेले बच जाते हो, बस साक्षीमात्र, और प्रत्येक वस्तु-शरीर, मन, ऊर्जा को विषयों में परिवर्तित किया जा चुका है। यहां तक कि आनंद, यहां तक कि समाधि यहां तक कि ध्यान भी वहां शेष नहीं बचता। जब ध्यान पूर्ण हो जाता है तो अब वह ध्यान नहीं रहता। जब ध्यान करने वाले ने वास्तव में लक्ष्य पा लिया हो तो वह ध्यान नहीं करता। वह ध्यान नहीं कर सकता क्योंकि अब यह भी चलने की, भोजन करने की भांति एक कृत्य है। वह प्रत्येक चीज से भिन्न हो चुका है। ध्यान और समाधि के मध्य यही अंतर है। ध्यान पांचवें शरीर, आनंद शरीर का है। अभी भी यह एक चिकित्सा, एक औषधि है। अभी भी तुम थोड़े से रुग्ण हो, रुग्ण हो क्योंकि तुम अपने आप का तादात्म्य किसी ऐसी बात के साथ कर रहे हो जो तुम नहीं हो। तादात्म्य ही सारी बीमारी है, और परम स्वाथ्य अ- तादात्म्य के माध्यम से उपलब्ध होता है। समाधि तभी है जब ध्यान तक पीछे छूट चुका हो। मैं एडवर्ड डी बोनो द्वारा लिखी गई एक पुस्तक पढ़ रहा था। उसने चीन में घटी एक बहुत प्राचीन घटना के बारे में लिखा है। प्राचीनकाल में चीन में एक पगोडा में, एक चीनी मंदिर में आग लग गई। खोजियों को पगोडा की राख में से उठती हुई विचित्र और भूख बढ़ाने वाली गंध ने, एक अभागे सुअर की ओर आकर्षित किया जो ज्वाला मैं फंस गया था और अग्नि में भुन गया था। इसके बाद से चीन में भुना हुआ सुअर एक सुरुचिपूर्ण भोजन बन गया। आकस्मिक रूप से यह खोज लिया गया, क्योंकि पगोडा में आग लग गई थी और एक सुअर उसमें जल कर भुन गया था। लेकिन फिर लोगों ने सोचा कि हो न हो इसका पगोडा से कोई संबंध है, वरना सुअर इतना स्वादिष्ट किस प्रकार हो सकता है? इसलिए चीन में सदियों से यह जारी रहा कि जब भी उनको भुना हुआ सुअर खाना हो, तो पहले वे एक पगोडा बनाते थे, फिर उसके भीतर एक सुअर को बंद करके उसमें आग लगा देते थे। बहुत महंगा था यह, किंतु यह उनको बहुत वैज्ञानिक प्रतीत होता था। अनेक शताब्दियों के बाद यह उनको पता लगा कि यह मूर्खतापूर्ण था। सुअर को पगोडा जलाए बिना भी भूना जा सकता है। इसके लिए पगोडा अनिवार्य नहीं है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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