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________________ अभिलेखित करते हैं, किंतु वे राबिया के बारे में कोई बहुत अधिक अभिलेखन नहीं करते। वे इस ढंग से अभिलेखन करते हैं कि पुरुष बहुत प्रभावशाली प्रतीत होते हैं। भारत में ऐसा हुआ है एक जैन तीर्थकर, एक जैन सदगुरु, एक सबुद्ध व्यक्ति पुरुष नहीं था, वह स्त्री थी। उसका नाम मल्ली बाई था, लेकिन जैन धर्म के अनुयायियों के एक बड़े समुदाय ने उसका नाम परिवर्तित कर दिया। वे उसको मल्ली बाई नहीं, मल्ली नाथ कहते हैं । 'बाई' यह प्रदर्शित करता है कि वह स्त्री थी; 'नाथ' यह प्रदर्शित करता है कि वह पुरुष था । : जैन के दो पंथ हैं श्वेतांबर और दिगंबर दिगंबरों का कहना है कि वह स्त्री नहीं थी, मल्लीनाथ । उन्होंने उसका नाम तक बदल डाला। यह बात पुरुष अहंकार के प्रतिकूल प्रतीत होती है कि एक स्त्री तीर्थकर, एक महान सदगुरु, सबुद्ध धर्म की संस्थापक, दिव्यता की ओर जाने वाले पथ की प्रणेता बन जाए? नहीं, संभव नहीं है यह। उन्होंने नाम ही बदल डाला है। इतिहास का अभिलेखन पुरुषों द्वारा किया गया है, और स्त्रियों को घटनाओं के अभिलेखन में जरा भी रस नहीं है। वे उनको जीने और अनुभव करने में अधिक उत्सुक हैं. एक बात तो यही है। दूसरी बात यह है कि स्त्री के लिए शिष्य बन जाना सरल है, शिष्य बन पाना स्त्री के लिए अत्यधिक सरल है, क्योंकि वह ग्रहणशील है। पुरुष के लिए शिष्य बन पाना कठिन है क्योंकि उसे समर्पण करना पड़ता है, और यही उसकी परेशानी है। वह संघर्ष कर सकता है लेकिन वह समर्पण नहीं कर सकता। इसलिए जब शिष्यत्व की बात आती है तो इसके लिए स्त्रियां बिलकुल उचित पात्र हैं। लेकिन जब तुमको सदगुरु बनना हो तो बिलकुल विपरीत घटता है। एक पुरुष आसानी से सदगुरु बन सकता है। स्त्री के लिए सदगुरु हो जाना बहुत कठिन लगता है। क्योंकि सदगुरु हो पाने के लिए तुमको वास्तव में आक्रामक होना पड़ता है। तुमको बाहर निकल कर दूसरों की मानसिक संरचनाएं नष्ट करनी पड़ती हैं। तुम्हें करीब-करीब हिंसक हो जाना पड़ता है, तुमको अपने शिष्यों को मारना पड़ता है। तुमको उनके मन को साफ करना पड़ता है इसलिए स्त्री को सदगुरु होना कठिन लगता है, पुरुष को शिष्य हो पाना कठिन लगता है। लेकिन पुनः वहां एक संतुलन है, स्त्रियों को शिष्य बन जाना सरलतर लगता है, और शिष्य बन कर वे सबुद्ध हो जाती हैं, लेकिन वे सदगुरु कभी नहीं बनतीं पुरुष के लिए शिष्य बन पाना कठिन है, लेकिन एक बार वह शिष्य बन जाए, सबुद्ध हो जाए, तो उसके लिए सदगुरु बन जाना बहुत सरल है, यह उसके लिए बहुत आसान है, सरलतर है। यही कारण है कि तुमने कभी स्त्री सदगुरु के बारे में नहीं सुना है.. लेकिन उसकी चिंता में मत पड़ो। तुम्हारे स्वयं के अनुभव एक स्त्री की भांति हैं। स्मरण रखो, परम के अनुभव को स्त्री या पुरुष से कुछ भी लेना-देना नहीं है। परम का अनुभव इस द्वैत के परे है। इसलिए जब तुम्हें संबोधि घटि होती है, उस क्षण में तुम न पुरुष होते हो और न स्त्री उस पल में तुम सारे दद्वैत का अतिक्रमण कर जाते हो। तुम एक पूर्ण वर्तुल बन चुके हो, किसी विभाजन का अस्तित्व नहीं रहा है इसलिए जब मैं
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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