SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुमसे बात कर रहा हूं तो मैं एक पुरुष की भांति, संबोधि के बारे में, नहीं बोल रहा हूं। कोई भी संबोधि के बारे में एक पुरुष की भांति नहीं बोल सकता, क्योंकि संबोधि न पुरुष है और न स्त्री। भारत में परम सत्ता न तो स्त्री है, न पुरुष, वह उभयलिंगी है। तुम कठिनाई में पड़ जाओगी. पश्चिम मन में ईश्वर पुरुष है। महिला मुक्ति आंदोलन की स्त्रियों के अतिरिक्त, जिन्होंने ईश्वर को 'शी' कहना आरंभ कर दिया है, तुम ईश्वर के लिए 'ही' का प्रयोग करते हो। वरना ईश्वर के लिए कोई भी 'शी' का प्रयोग नहीं करता; तुम 'ही' प्रयोग करते हो। और मैं भी सोचता है कि- 'शी' बेहतर रहेगा।'शी' में 'ही' सम्मिलित है- 'एस' के बाद वहां 'ही' हैं लेकिन 'ही' में 'एस' शामिल नहीं है। यह बेहतर है, यह ईश्वर को थोड़ा बड़ा कर देता है।'ही' से 'शी' बडा है; इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन पश्चिम के मन में ईश्वर 'ही' है। पश्चिम की भाषाओं में केवल दो ही लिंग होते हैं स्त्रीलिंग और पुरुषलिग। भारतीय भाषाओं में, विशेषतौर से संस्कृत में हमारे पास तीन लिंग होते हैं : स्त्रीलिंग, पुरुषलिग और उभयलिग। ईश्वर उभयलिंगी है। वह न ही पुरुष है और न ही स्त्री, वह दोनों ही नहीं है। वह यह है, तत, वह है-व्यक्तित्व खो चुका है। वह अवैयक्तिक है, मात्र ऊर्जा है। इसलिए इसके बारे में जरा भी चिंता मत करो। 'एक स्त्री के रूप में मेरे लिए संबोधि क्या है, कृपया इसके बारे में आप कुछ कहना चाहेंगे। स्वयं को एक स्त्री के रूप में सोचना बंद कर दो, वरना तुम स्त्रैण मन से चिपक जाओगी। पुरुष या स्त्री, सभी मनों का त्याग करना पड़ेगा। गहन ध्यान में तुम स्त्री या पुरुष दोनों में से कुछ भी नहीं होते। गहरे प्रेम में भी तुम स्त्री या पुरुष कुछ नहीं होते। क्या तुमने कभी इसे देखा है? यदि तुमने किसी स्त्री या पुरुष के साथ प्रेममय संभोग किया है, और तुम्हारा प्रेम वास्तव में परिपूर्ण और चरम था तो तुम भूल जाते हो कि तुम कौन हो, पुरुष या स्त्री? यह मन को हतप्रभ करने वाला अनुभव है। तुम बस जानते ही नहीं कि तुम कौन हो। काम- भोग की गहराई में, उत्कर्ष के किसी क्षण में एकात्मता घटित हो जाती है। तंत्र का पूरा प्रयास यही है. काम- भोग को एकात्मता की अनुभुति में रूपांतरित कर देना-क्योंकि तुम्हारे लिए यह एकात्म होने का पहला अनुभव होगा, और संबोधि एकात्म होने का अंतिम अनुभव है। गहरे संभोग में तुम मिट जाते हों-पुरुष स्त्री की भांति हो जाता है, स्त्री पुरुष की भांति हो जाती है, और अनेक बार वे अपनी भूमिकाएं बदल लेते हैं। और फिर एक पल आता है जब तुम दोनों एक परिपूर्ण लयबद्धता में हो जाते हो, तब ऊर्जा का एक वर्तुल उठ जाता है, वह दोनों नहीं होता। उसको अपना पहला अनुभव बन जाने दो। संबोधि का आधारभूत अनुभव पहली झलक प्रेम है। फिर एक दिन जब तुम और समग्र गहन प्रेमालिंगन में मिलते हो, यही समाधि, एक्सटैसी है। तब तुम स्त्री या पुरुष नहीं रह जाते। इसलिए बिलकुल आरंभ से ही विभाजन को गिराना आरंभ कर दो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy