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________________ बचने का एकमात्र उपाय है - खुद को तर्क में मत समझाओ । उलझन से बचने का एकमात्र उपायआत्मनिर्भर होना, सचेत होना और जागरूक होना है। 'जागरूकता को स्थगित मत करो। जब कभी तुम किसी पर निर्भर होने लगते हो तुम जागरूकता से बच रहे हो। और एकदम शुरू से ही तुम्हें इसके लिए शिक्षित और संस्कारित किया गया है। मां-बाप, अधिकारी, समाज, शिक्षाविद, राजनेता सभी तुम्हें इस भांति संस्कारित करते रहते हैं कि तुम हमेशा दूसरों पर निर्भर रहो। तभी तुम्हें उनके अनुसार चलाया जा सकता है, तुम पर अधिकार जमाया जा सकता है तभी तुम्हें दमित और शोषित किया जा सकता है, तुम्हें गुलामी की हालत में लाया जा सकता है। तुम अपनी आजादी खो देते हो। ऐसी है तुम्हारे मन की दशा जब तुम मेरे पास आते हो तो तुम इसी मनःस्थिति के साथ आते हो । निःसंदेह कोई और ढंग है भी नहीं। और तुरंत तुम्हारा मन तुम्हारी इसी मनःस्थिति से कार्य करने लगता है, तुम मुझ पर निर्भर होने लगते हो। लेकिन मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दे रहा हूं। तुम्हें बार-बार धकेल कर मैं तुम्हें बार-बार तुम पर फेंक दूंगा। क्योंकि मैं तुम्हें तुम्हारी स्वयं की समझ पर निर्भर रखना चाहता हूं तभी यह कुछ स्थायित्वपूर्ण होगी, फिर तुम कभी उलझन में न पड़ोगे | उलझाव आ ही जाता है.. मैं तुमसे कुछ कहता हूं तुम इसमें विश्वास करना शुरू कर देते हो, परंतु यह तुम्हारी अपनी दृष्टि, तुम्हारा स्वयं का बोध नहीं होता है। फिर कल जिंदगी में कुछ घटता है और तुम मुश्किल में पड़ते हो मुश्किल इसलिए आती है कि तुमने यंत्रवत सीखा है, तुमने मेरी बातें याद कर ली हैं। अब तुम इस उधार की समझ के द्वारा प्रतिसंवेदित करने की कोशिश करोगे जीवन प्रतिपल बदलता है। मेरी इस पल की समझ अगले पल ही तुम्हारे किसी काम की न रहेगी। मेरी इस समझ को स्थायी संदर्भ नहीं बनाया जा सकता। और अगर तुमने इसे शाब्दिक रूप से, बौद्धिकता से, मानसिक रूप से ही ग्रहण किया हो और तुम इसे साथ लिए फिरो, तो तुम बार-बार उलझन में पड़ोगे क्योंकि जीवन हमेशा तुम्हारी इस तथाकथित समझ को बेकार सिद्ध करता रहेगा । - जीवन केवल असली समझ पर भरोसा करता है। असली का अर्थ है तुम्हारी अपनी प्रामाणिक, जिसका तुममें जन्म हुआ हो। मैं यहां तुम्हें जानकारी देने के लिए नहीं हूं मैं यहां तुम्हें सिद्धात देने के लिए नहीं हूं यही तो सदियों से किया जा रहा है और आदमी सदा से अज्ञानी बना रहा है। तुम्हें उस सत्य के प्रति सचेतन करने को हूं जो तुम्हारे पीछे तुममें छिपा है, वह है प्रकाश - स्रोत । उस स्रोत पर दस्तक दो, उस प्रकाश को अपने भीतर ज्योतिर्मय होने दो। और तभी तुम्हारे पास कुछ जीवंत होगा। तब जीवन में जो भी समस्याएं आएंगी, तुम उन्हें अपने अतीत की जानकारी से नहीं सुलझाओगे, तुम उन्हें वर्तमान में सुलझाओगे तुम उनका सामना अपनी वर्तमान समझ से करोगे ।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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