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________________ शीत में हरी शाख हो खड़ी झलक दिखाता हो दिनेश धरा पर कोमल रिमझिम झड़ी ऐसे वह आता है सर्वेश। .......धरा पर कोमल रिमझिम झड़ी, ऐसे वह आता है सर्वेश। गहन समर्पण, संवेदनशीलता, जागरूकता में अचानक तुम किसी ऐसे भाव से भर उठते हो जिसे तुमने पहले कभी न जाना था। यह हमेशा से वहां था, लेकिन इसकी संचेतना होने के लिए तुम अति स्थूल थे। यह सदा से वहां था, लेकिन तुम संघर्ष में, अहंकार को पोषित करने के उपायों में इस कदर उलझे हुए थे कि तुम कभी पीछे मुड कर इसे महसूस न कर सके। यह वहां सदा मौजूद था पर तुम उपस्थित नहीं थे। यह हमेशा से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था, लेकिन तुम घर लौटना भूल चुके थे। अहंकार को गिरा देना ही घर लौटने का उपाय है। इसलिए खुद को डुबा दो। यहां मैं तुम्हें इसी की सारी कला सिखा रहा हूं। यदि मैं कुछ भी सिखा रहा हूं तो मैं तुम्हें मृत्यु सिखा रहा हूं। क्योंकि मैं जानता हूं केवल मृत्यु द्वारा ही पुनर्जीवन मिलता है। प्रश्न: आज सुबह आप उत्तरदायी होने की आवश्यकता पर, दूसरों पर निर्भर न होने पर और एकाकी होने पर बोले। मैं समझता हूं कि इन बातों से बचने का बहाना करने के लिए मैं संन्यास ले रहा हूं-हर बार आपसे पूछते रहना अब मैं क्या करूं, जब मैं उदास और अकेला होता हूं तो आपको उपस्थिति की पुकार, कल्पना करता हूं, कि खालीपन को भरते हुए आप मेरे पास आते है। मैं उनुत्तरदायी अनुभव करता हूं, और फिर से उलझ जाता हूं कि संन्यास क्या है? अगर तुम किसी दूसरे पर निर्भर रहे तो तुम सदा उलझे रहोगे, क्योंकि तब समझ तुम्हारी नहीं होगी। और समझ उधार नहीं ली जा सकती। अत: कुछ समय के लिए तुम खुद को मूर्ख बना सकते हो। लेकिन बार-बार सच्चाई प्रकट होती रहेगी और तुम उलझन में पड़ जाओगे। इसलिए उलझन से
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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