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________________ इसे बदलने के लिए तुम कुछ भी नहीं कर सकते। तुम तो बस इस बात को देख सकते हो कि तुम्हारी ओर से कुछ भी किए जाने की कोई जरूरत नहीं है। और एक बार तुम इसे गिरा दो, बल्कि यह कहना उचित रहेगा कि एक बार तुम्हारी गहरी समझ में यह गिर जाए-तुम जीवन के प्रति खुल जाते हो। तब एक खुले कक्ष में बहती शीतल समीर की भांति जीवन तुममें से प्रवाहित होने लगता है। अभी तुम एक बंद कमरे जैसे हो, सारी खिड़कियां-दरवाजे बंद हैं, न कोई प्रकाश किरण तुममें प्रविष्ट होती है, न कोई ताजी हवा का झोंका तुममें होकर गुजरता है। तुम अपनी गुफा में हो, बंद। और निःसंदेह अगर तुम्हें दम घुटने जैसा लगे तो यह स्वाभाविक है। लेकिन मैं जानता हूं कि खुद को डूबने देना कठिन है। इसमें समय लगता है। कुछ झलकियां चाहिए। कभी-कभी बहते जाओ, तैसे मत, महसूस करो कि नदी तुम्हें लिए जा रही है। कभी बाग में बस बैठ जाओ, चुनाव मत करो। ऐसा मत कहो कि क्या सुंदर है और क्या कुरूप। विभाजन मत करो, बस प्रत्येक वस्तु के प्रति मात्र वहां उपस्थित रहो। कभी बाजार में टहलने निकल पड़ो, न निंदा, न प्रशंसा, कुछ कहना मत। बहुत से ढंगों से सीखो कि कैसे बिना मूल्यांकन किए बस मौजूद रहा जाए। क्योंकि जिस क्षण तुम मूल्यांकन करते हो, तुमने चुनाव कर लिया। जिस क्षण तुमने कहा, यह अच्छा है, तुम कह रहे हो, 'मैं इसे पाना चाहता हूं।' जिस क्षण तुम कहते हो, यह बुरा है, तुम कह रहे हो, 'मैं इसे नहीं चाहता; मैं इसे पाना नहीं चाहता हूं।' जिस क्षण तुमने कहा, यह स्त्री खूबसूरत है, तुममें कामना उठ गई। जिस पल तुमने कहा, यह स्त्री बदसूरत है, तुम विकर्षित हो चुके होते हो। तुम पहले से ही भले और बुरे की, सुंदर और कुरूप की वैत की पकड़ में फंस चुके होते हो, तुम्हारे भीतर चुनाव प्रविष्ट हो चुका है। अहंकार के ढंग बहुत सूक्ष्म हैं। व्यक्ति को बहुत सजग रहना होता है। और एक बार-बस एक पल के लिए ही तुम जान लो कि अहंकार वहां नहीं है, तुम इसे निर्मित नहीं कर रहे हो-अचानक सारे द्वार खुल जाते हैं, और हर ओर से, सारी दिशाओं से जीवन तुम्हारी और उमड़ने लगता है। यह उमड़ना अति सुकोमल है। अगर तुम जागरूक नहीं हो, तो तुम इसे जान भी न पाओगे, महसूस भी न कर सकोगे। परमात्मा का स्पर्श बहुत सूक्ष्म होता है, इसकी अनुशन के लिए बहत संवेदनशील होने की जरूरत है। अभी उस दिन मैं हब उस्टर ह्यूस की एक छोटी सी कविता पढ़ रहा था। नहीं भेजता प्रभु अपने वचन हो जल का जैसे तीव्र प्रवाह उग्र तूफान और जल प्लावन बहा ले जाता हम को आह।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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