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________________ तो पुरुष विजयी हो जाएगा। इसलिए वे तर्क नहीं करतीं, वे झगड़ा करती हैं। वे क्रोधित हो जाती हैं और जो वे तर्क से नहीं कर सकतीं उसे वे अपने क्रोध के दवारा कर लेती हैं। वे तर्क के विकल्प में क्रोध से काम लेती हैं और निःसंदेह पुरुष यह सोच कर कि इतनी छोटी सी बात के लिए इतनी झंझट क्यों पैदा करना? राजी हो जाता है। लेकिन यह कोई सहमति नहीं है, और यह दोनों के बीच एक अवरोध की भांति कार्य करेगा। उसके तर्क को सुनो। ऐसी संभावनाएं हैं कि वह ठीक भी हो सकता है, क्योंकि आधे संसार, बाहरी संसार, वस्तुगत संसार तक तर्क से ही पहुंचा जा सकता है। इसलिए जब कभी भी बाहरी संसार का प्रश्न हो, तो अधिक संभावना यही है कि पुरुष सही हो सकता है। लेकिन जब कभी भी यह आंतरिक संसार का मामला हो, तो इस बात की अधिक संभावना है कि स्त्री सही हो सकती है क्योंकि वहां तर्क की आवश्यकता नहीं है। इसलिए यदि तुम कार खरीदने जा रही हो तो पुरुष की सुनो, और यदि तुम किसी चर्च, धर्म के पंथ को चुनने जा रहे हो तो स्त्री की सुनो। लेकिन यह करीब-करीब असंभव है। यदि तुम्हारी पत्नी है तो तुम अपने लिए कार नहीं चुन सकते, लगभग असंभव है यह बात। वही इसे चुनेगी। न सिर्फ यह बल्कि वह पिछली सीट पर बैठ जाएगी और इसे चलाएगी भी। पुरुष और स्त्री को एक निश्चित समझ और सहमति पर आना पड़ेगा कि जहां तक वस्तुओं और उचित और सही के लिए अधिक ठीक है। वह तर्क के माध्यम से कार्य करता है, वह अधिक वैज्ञानिक है, वह अधिक पाश्चात्य है। जब कोई स्त्री भावना से कार्य करती है तो वह अधिक पूर्वीय, अधिक धार्मिक है। इस बात की अधिक संभावना है कि उसका भावपक्ष उसको ठीक रास्ते पर लेकर जाएगा। इसलिए यदि तुम चर्च जा रहे हो तो अपनी स्त्री का अनुगमन करो। उसके पास उन चीजों के लिए अधिक सही अनुभूति है जो भीतर के संसार की हैं। और यदि तुम किसी व्यक्ति को प्रेम करती हो तो धीरे- धीरे तुम उसकी समझ तक पहुंच जाती हो, और दो प्रेमियों के मध्य एक मौन सहमति बन जाती है. कौन किस मामले में ठीक होने वाला है। और प्रेम सदैव समझ से परिपूर्ण होता है। बाह्य अंतरिक्ष से आए हुए दो परग्रहीय प्राणी एक सड़क से गुजर रहे थे, कि उन्होंने एक यातायात संकेत को देखा।'मुझे लगता है कि वह तुमको चाहती है', पहले प्राणी ने कहा। एक तो तुम्हें आख मार रही है। तभी संकेत बदल कर जाओ से रुको हो गया।'ठीक महिलाओं की भांति', दूसरा प्राणी बड़बड़ाया, 'अपने मन को एक क्षण से अगले क्षण तक स्थिर नहीं रख सकतीं।' एक स्त्री के लिए अपने मन को एक राय पर कायम रख पान है, क्योंकि उसके मन में अधिक तरलता है, वह एक प्रक्रिया जैसा अधिक है, उसमें ठोसपन बहुत कम है। यही उसका सौंदर्य और प्रसाद है। वह नदी जैसी अधिक है, परिवर्तित होती चली जाती है। पुरुष अधिक ठोस, अधिक वर्गाकार, अधिक निश्चित, निर्णय लेने में सक्षम है। इसलिए माधुरी जहां फैसले लेने हों, बोधि की सुनो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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